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________________ ( १५३ ) कितनी व कै दफ़े १६. हरी तरकारी व सचित्त वस्तु कितनी १७. सर्व भोजन पान वस्तुओं की संख्या । इनमें से जिस किसी को न भोगना हो, बिल्कुल त्याग देवे । इसके पाँच श्रतीचार है- भूलसे छोड़ी हुई सचित्त वस्तु खालेना, छोड़ी हुई सचित्त पर रखी हुई या उससे ढकी हुई वस्तु खाना, छोड़ी हुई सचित्त से मिली वस्तु खालेना, कामोद्दीपक रस खाना, अपक व दुष्पक्व पदार्थ खाना । (७) अतिथिसंविभाग --- अतिथि या साधु को दान देकर भोजन करना | अपने कुटम्व के लिये बनाये भोजन में से पहले कहे तीन प्रकार के पात्रों को दान देना । नौ प्रकार भक्ति यथासंभव पालना - भक्ति से पड़गाहना ( घर में ले जाना ), उच्च आसन देना, पग धोना, नमस्कार करना, पूजना, मन शुद्धि, बचन शुद्धि, काय शुद्धि, भोजन शुद्धि रखना । साधु के लिये नौ भक्ति पूर्ण करना योग्य है । इसके निम्न पाँच दोष बचाना चाहियें, जो साधु को व सचित्त त्यागी को दान की अपेक्षा से हैं :-- सचित्त ( हरे पत्ते ) पर रखी वस्तु देना, सचित्त से ढकी वस्तु देना, आप बुलाकर स्वयं न दान दे दूसरे को दान करने को वह कर चले जाना, ईर्षा से देना, समय उल्लंघन कर देना । इन श्रन्त के चार को शिक्षावत कहते है । ( ३ ) सामायिक प्रतिमा इसमें इतनी बात बढ़ जाती है कि श्रावक को नियम
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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