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________________ ( १५१ ) कर ले | इनके पाँच प्रतीचार ये है कि इन दश वस्तुओं के पांच जोड़े हुए, इन से से एक जोड़े में एक की मर्यादा बढ़ा कर दूसरे की घटा लेना, जैसे क्षेत्र रक्खे थे ५० बीधे, मकान थे दश, तब क्षेत्र ५५ वोघे करके मकान एक घटा देना । सात शील ये हैं - (१) दिनत - जन्म पर्यन्त सांसारिक कार्यों के लिए दश दिशाओं में जाने श्राने, माल भेजने मंगाने का प्रमाण बाँध लेना, जैसे पूर्व में २००० कोश तक । इसके निम्न पांच प्रतीचार है : ऊपर को लाभ या मूल से अधिक चले जाना, नीचे को अधिक जाना, आठ दिशाओं में किसी में अधिक चले जाना, किसी तरफ मर्यादा बढ़ा लेना किसी तरफ घटादेना, मर्यादा को याद न रखना । (२) देशात - प्रति दिन व नियमित काल तक दिग्बत में को हुई मर्यादा को घटाकर रख लेना । इसके निम्न पांच छातीचार है : मर्यादा के बाहर से मंगाना या भेजना, बाहर वाले से बात करना, उसे रूप दिखाना या कोई पुद्गल फेंककर काम बता देना । (३) अनर्थदण्ड विरति — प्रनर्थ पापसे बचना, जैसे दूसरों को पाप करने का उपदेश देना, उनका बुरा विचारना, हिंसाकारी वस्तु खड्ग व बरड़ी आदि मांगे देना, खोटी कथाएँ पढना, सुनना, श्रालस्य से वर्तना, जैसे पानी व्यर्थ फेंकना आदि । इसके निम्न पाँच श्रतीचार हैं : असभ्य भंड वचन कहना, काय को कुचेष्टा सहित भंड
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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