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________________ (१४४) (१) पात्र दान-जिसको भक्तिपूर्वक करना चाहिये। जिन में रत्नत्रय धर्म पाया जावे उनको पात्र कहते हैं। वे तीन प्रकार है : १ उत्तम-दिगम्बर जैन मुनि २. मध्यम-व्रती श्रावक ३.जघन्य-व्रत रहित श्रद्धावान गृहस्थ स्त्री पुरुष । (२)करुणा दान-जो कोई मनुष्य, पशु या जन्तु दुःखी हो उस के क्लेश को मिटाना। देने योग्य चार पदार्थ है-आहार, औषधि, विद्या या ज्ञान तथा अभयपना या प्राण रक्षा | गृहस्थ जब भोजन करे तो पहले आहार दान देले, कम से कम एक ग्रास ही दान के लिए निकाल देवे। इन छ. नित्य कर्मों को गृहस्थ इस तरह करे-सूर्योदय से पहले उठ कर साधारण जलसे शुद्ध हो प्रथम तप करे अर्थात् सामायिक करे, उसी समय सयम की प्रतिज्ञा कर के फिर नित्य की शरीर क्रिया करके देव पूजा करे, गुरु हो तो गुरु भक्ति करे, फिर शास्त्र पढ़े या सुने, फिर घर आकर दान दे भोजन करे । सन्ध्या को भी पहले सामायिक करे, फिर जिन मन्दिर में जा दर्शन करे, शास्त्र पढ़े या सुने । सोते वक्त शांत चित्त हो कम से कम नौ बार मन्त्र पढ कर सोवे । उठते हुये भी पहिले नौ चार मन्त्र पढ़ले फिर शय्या छोड़े। दानमें यह विचार रखे कि जितनी आमदनी हो उसके चार भाग करे। एक भाग नित्य खर्च में दे, एक भाग विवा. हादि ख़र्च के लिये, एक भाग संचय के लिये व एक भाग दान के लिये अलग करे।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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