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________________ ( १३२ ) देवगत्यानुपूर्वी, रूप, रस, गंध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उल्लास, त्रस, वादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, श्रदेय | उदय-७२ में से हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्ला घटाने पर ६६ का सत्ता - आठवें के अनुसार १४२, १३६ या १३८ की । में १०. सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान बंध -- १७ का २२ में से संज्वलन क्रोधादि ४ व पुरुष वेद घटाने पर । उदय - ६० का । ६६ में से संज्वलन, कषाय लोभ सिवाय ३ व स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद, यह ६ घटाने पर । सत्ता-उपशम श्रेणी में १४२ की व क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ की तथा क्षपक श्रेणी में १०२ की । १३८ में से ३६ घटाने पर। वे ३६ ये हैं : निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अप्रत्याख्यानावरण कषाय ४, प्रत्याख्यानावरण कषाय ४, संज्वलन क्रोध, मान, माया ३, नो कषाय ६, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, उद्योत, श्रातप, एकेन्द्रिय से चौइद्रिय ४, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर । ११. उपशांतमो गुणस्थान में बंध- १ साता वेदनीय का । १७ में से १६ घटाने पर । वे १६ वे हैं :
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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