SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३० ) स्व को घटाकर ६६ रहीं, उनमें चार गत्यानुपूर्वी व एक सम्यक् प्रकृति मिला देने पर सत्ता - १४८ की । यदि क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो तो एक सो इकतालीस की ही सत्ता होगी । • ५. देशविरत गुणस्थान में बंध - ६७ का । चौथे की ७७ में से १० घटाने पर । वे १० ये हैं अप्रत्याख्यानावरण कषाय चार, मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी, श्रदारिक शरीर, श्रदारिक आङ्गोपांग, वज्र वृत्रभनाराच संहनन । उदय - ८७ का। चौथे की १०४ में से १७ घटाने पर । वे १७ ये हैं : श्रप्रत्याख्यानावरण कषाय ४, नरकायु, देवायु, नरकादि ४ श्रानुपूर्वी, नरकगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक श्राङ्गोपांग, दुभंग, अनादेय, यश । सत्ता - नरकायु के बिना १४७ की, परन्तु क्षायिक के केवल १४० की ही । ६. प्रमत्तविरत में गुणस्थान B बंध - ६७ में से प्रत्याख्यानावरण कषाय चार घटाने पर ६३ का । हृदय-८१ का । ८७ में से प्रत्याख्यानावरण कषाय ४, तियंच आयु, तियंचगति, उद्योत, नीच. गोत्र घटाने व आहारक शरीर व श्राहारक श्रीङ्गोपांग मिलाने से ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy