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________________ (११८ ) से मिल गई और शरीर के चारों ओर त्रिकोणरूप हो गई। इस त्रिकोण की तीनों रेखाओं पर र र र र र र र अग्निमय वेष्टित है तथा इस के तीनों कोनों में बाहर अग्निमय स्वस्तिक हैं। भीतर तीनों कोनों में अग्निमय ऊँरें लिखे है ऐसा विचारे । यह मण्डल भीतर तो आठ कर्मों को और वाहर शरीर को दग्ध करके राखरूप बनाता हुआ धीरे २ शान्त हो रहा है और अग्निशिखा जहाँ से उठो थी वही समा गई है, ऐसा सोचना सो अग्निधारणा है । इस मण्डल का चित्र इस तरह पर है : *** ररररररररररररररररररररररररररररररररररर कररररररररररररररररररररररररररररररररररर में * - "* * रररररररररररररररररररररररररररररररररररररर
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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