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________________ (१०४) व पांच प्रकार के चारित्र से होता है । ® यह भी जानना चाहिए कि यह पुरुषार्थी जितना २ आस्रव भाव हटाता जायगा उतना २ खवर होता जायगा। जैसे किसी ने मिथ्यात्व व 'अनन्तानुबंधो कषाय हटा दिया तो मिथ्यात्व आदि के कारण जो कर्म बँधते थे सो न बँधेगे, शेष अविरति श्रादि चार कार. योसे बन्धते रहेंगे। ४४. पांच व्रत (१) अहिंसावत-प्रमाद या कषाय सहित भावों से अपने या दूसरों के भावप्राण (चेतना, शान्ति आदि) और द्रव्यप्राण ( इन्द्रिय बल श्रादि ) का नाश करना व उनको पीडित करना हिंसा है-इसका प्रभाव सो अहिंसा है। जिस समय हमारे में क्रोध भाव हुआ, उसी समय हमने अपने भावप्राण शान व शांति को बिगाड़ा और शरीर के वलको घटाकर अपने द्रव्यप्राण घाते, फिर क्रोधवश हमने दूसरे को हानि पहुँचाई। तब दूसरे ने यदि कुछ भी न गिना तो उसके भावप्राण रक्षित रहे पर शरीर व धन की हानि करने से द्रव्यप्राणों में हानि हुई, परन्तु हम तो हिंसक हो चुके । हमारी लाठी मारने से दूसरा बच गया तो भी हम हिंसक होगये। जिसके द्रव्यप्राण अधिक हैं व अधिक उपयोगी हैं उसके घात में कषाय भाव भी प्रायः अधिक होगा, इससे हम हिंसा के भागी अधिक होंगे। वद समिदी गुत्तीनो धम्माणु पिहा परीसहजनोय। चारित्तंबहुमेयं णायव्या भावसंघर विसेसा ॥३॥ [द्रव्यसंग्रह ]
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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