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________________ ( १०० ) जैसा बाहरी निमित्त होगा वैसा कर्म फल देगा और जिस कर्म का बाहिरी निमित्त न होगा वह कर्म अपने समय पर बिना फल दिखाये चला जायगा। जैसा हमारे साथ क्रोध, मान, माया, लोभ, चारों कषायका फल हरसमय होना चाहिये अर्थात् इन कषायों की वर्गणायें हर समय गिरनी चाहियें। हम यदि १० मिनट तक श्रात्मध्यानमें लय होगये तो वे कर्म तो गिरते जायँगे परन्तु हमारे में क्रोधादिभाव न झलकेंगे, अथवा यह प्रगट है कि क्रोधभाव, मानभाव, मायाभाव, लोभभाव, एक साथ नहीं होते-आगे पीछे होते हैं। जिस समय क्रोधभाव होरहा है तब क्रोधी वर्गणाएं तो फल देकर और शेष तीन कषायों को वर्गणाएं बिना फल देकर भड रही हैं। किसी जीव के साता वेदनीय असातावेदनीय दोनों अपने समय पर गिर रही हैं। यदि हम सङ्कट में पड़े हैं व भूख से दुखी हैं तब असाताफल देकर व साता बिना फल दिये झड़ रही हैं। जिन कर्मों में बहुत तीव्र अनुभाग होता है वे अपने निमित्त अपने अनुकूल करके फल देते हैं, परंतु जिनमें उतना तीव्र अनुभाग नहीं होता है वे निमित्त अनुकूल न होने पर यों ही झड़ जाते हैं । कर्मों के फल देने में हम को अपने स्थूल श्रदारिक शरीर का दृष्टांत सामने रख लेना चाहिये । हम आपही नित्य भोजन, पान, हवा लेते हैं, आपही उससे रुधिर वीर्यादि बनाते हैं, श्राप ही उससे शरीर में बल पाते है और काम करते रहते हैं । कोई रोगकारी पदार्थ खा लिया था, उस के परमाणुओं द्वारा रोग पैदा होना चाहिये, परन्तु हम पीछे ऐसे संयोगों में हैं जिन में रोग नही हो सकता तो वे रोग पैदा करने वाले परमाणु यौही गिर जायेंगे अथवा कोई पौष्टिक औषधी खाई थी उससे पुष्टि
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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