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________________ ( च ) ग्रन्थों में जैनधर्म विद्यमान है, तथापि वह इतना विस्ताररूपसे अनेक ग्रन्थों में है कि जब तक भिन्न २ विषय के १०-२० ग्रन्थ न पढ़े जावें तब तक जैन दर्शन का श्राभास नहीं झलकता । साधारण जनता के लिये, जो जैनधर्म को तुच्छ, नास्तिक व अनीश्वरवादी समझ रही है, बहुतसे ग्रन्थों का परिश्रम करके पढ़ना, सम्भव नहीं है। इसलिये इस छोटीसी पुस्तक में सर्व साधारण के लाभ के लिये जैनदर्शन की जानने योग्य बहुतसी बातों को बता दिया गया है और यह आशा की जाती है कि जो इस पुस्तक को आदि से अन्त तक पढ जावेंगे उनको स्वयं यह रुचि पैदा हो जायगी कि हम जैन ग्रन्थों को देखें और लाभ उठावें । कोई समय ऐसा था कि जब भारत में परस्पर भिन्न २ धर्मों में घृणा न थी । सब प्रेमसे बैठकर वार्तालाप करते थे व जिसको जो रुचता था वह उसीको पालने लगता था । पिता पुत्र, पति-पत्नी व भाई २ का धर्म भिन्न २ रहता था, तो भी सामाजिक प्रेम व श्रापस के बर्तावे में कोई अन्तर नहीं पड़ता था। तब एक धर्मवाले दूसरे धर्म के सम्बन्ध में मिथ्या आरोप नहीं लगाते थे। जिसकी जो २ मान्यता थीं, उन्हीं मान्यताओं को लेकर और उन पर ही सद्भाव से तर्क वितर्क करके खण्डन या मण्डन किया करते थे । वर्तमान में भी प्रायः सत्य खोज का भाव लोगों में बढ़ रहा है और लोग मिथ्या आरोपों से घृणा करने लगे है तथा विद्वान लोग सब ही धर्मों के सिद्धान्तों को सुनना व जानना चाहते हैं । ऐसे समय में जैनियों का कर्तव्य है कि वे अनेक नवीन ढङ्ग की पुस्तकों से तथा व्याख्यानों से अपने जैनधर्म 1
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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