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________________ ( 50 ) इसके द्वारा तर्क वितर्क कर सकते है व शिक्षादि ग्रहण कर सकते है। ३४. आसव तत्व जिन आत्मा के भावों से व हरकतों से पाप पुराय मई कार्मण वर्गणा खिंचकर बँध के लिये जाती है उनको भावास्रव कहते है और कर्म वर्गणाओं का जो श्रागमन है उसको द्रव्याकहते हैं । * शरीर वाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥ १७ ॥ ( त० सू० श्र० ५ ) भावार्थ- शरीर, वाणी, मन, स्वासां वास बनाना पुलों का काम है । विकसिताष्टदूत पद्माकारेण हृदयान्तर्भागे भवति, तत्परिणमण कारण मनोवर्गणा स्कन्धानाम् श्रागमनात् । ( गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २२६ संस्कृत टीका ) द्रव्य मन खिले हुए आठ पत्तों वाले कमल के श्राकार हृदय के अन्दर होता है । उस मन के बनने के कारण मनोवर्गणा जाति के स्कन्ध श्राते है । द्रव्यमनःपुलाः मनस्त्वेन परिणताइति पौङ्गलिकम् । ( सर्वार्थसिद्धि ०५ सू० १६) जो पुगल मनरूप से परिणमन करते हैं उन को द्रव्य मन कहते है । ऐसा ही कथन राजवार्तिक में इसी सूत्र की व्याख्या में है । * श्रासदि जेणकम्मं परिणामेणप्पणी स विराणे । भावासवो जिसुतो कम्मालवणं परो होदि ॥ २६ ॥ ( द्रव्यसग्रह
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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