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________________ (घ ) अब भी करोडो हिन्दुओं में मौजूद है जो अब भी जैनमंदिरों में पग रखते हुए डरते है और जैनियों को नास्तिक मानकर उन को नास्तिक कहते हैं व कहीं २ कभी २ उनके रथोत्सवादि धर्मकार्यों तक का बहुत बड़ा विरोध कर देते हैं। ' कुछ अगरेज़ लोगोने जब भारत का इतिहास लिखना प्रारम्भ किया, तब उन्ही ब्राह्मणों से यह जानकर कि बौद्ध और जैन नास्तिक हैं व हिंसा के विरोधी हैं व वेद को नही मानते हैं, दोनों को एक कोटि में रख दिया और इस कारण से कि बौद्धों के साहित्य का बहुत प्रचार था तथा भारत के वाहर बौद्धमतके अनुयायी करोड़ो है, इसलिये उन्होंने बिना परीक्षा किये लिख दिया कि जैनमत बौद्धमत की शाखा है। किसी ने लिख दिया कि यह जैनमत ६०० सन् ई० से चला है जव कि बौद्धमत घटने लगा था; इत्यादि। इस पुस्तक के लिखने का मतलब यह है कि 'जैनधर्म क्या वस्तु है?' इसका यथार्थ शान मनुष्यसमाज को होजावे और वे समझ जावे कि इसका सम्बन्ध पिता पुत्र के समान न चौद्धमतसे है न हिन्दूमत से है, किन्तु यह एक स्वतन्त्र प्राचीनधर्म है जिसके सिद्धान्त की नीव ही भिन्न है । साहित्य प्रचार के इस वर्तमानयुग में भी अबतक जैन. धर्म का ज्ञान और उसका वास्तविक रहस्य साधारण जनता को न हुआ, इस के निम्नोक्त दो मुख्य कारण हैं: (१)वेदानुयायी हिंदुओका सैकड़ोवर्षों या सैकड़ोपीढ़ियों से यह मानते चले आना कि जैनधर्म नास्तिको अर्थात् ईश्वर को न मानने वाले वेदविरोधियों और घृणितकर्म करने वालो का एक घृणित मत है, उसमें तथ्य कुछ नहीं है उनके
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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