SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० जैनदर्शन चिन्ता होना स्वाभाविक था । सुयोगसे हमें ला० राजकृष्णजी जैन दिल्लीके पौत्रके विवाहमें जानेका सुअवसर मिला। हमें प्रसन्नता है कि लालाजीने हमारे संकेतपर तुरन्त इसकी १०० प्रतियोंके प्रकाशनमें ७००) तथा इसी ग्रन्थमालासे पहली बार प्रकाशित हो रही पं० जयचन्दजी छाबड़ा कृत द्रव्यसंग्रह-भाषावचनिकाकी १०० प्रतियोंके प्रकाशनमें १०० कुल ८००) की उदार सहायता प्रदान की। ला० शान्तिलालजी जैन कागजी दिल्लीने भी इसकी २५ प्रतियोंके लिए १५०) की सहायता की। उधर श्रीनीरजजी जैन सतना भी हमें ५० प्रतियोंके लिए स्वीकारता दे चुके थे। अतः इन सभी उदार महानुभावों और ग्रन्थमालाप्रेमियोंके सहयोगबलपर हम जैनदर्शनका यह द्वितीय संस्करण निकालनेमें सक्षम हो सके हैं । इसका श्रेय ग्रन्थमाला-प्रबन्ध-समितिके सदस्यों और ग्रन्थमाला-प्रेमियोंके सहयोगको है। ___ यह भी कम सुयोगकी बात नहीं है कि प्रिय श्री बाबूलालजी जैन फागुल्लने स्वावलम्बी बननेकी दृष्टिसे हालमें चालू किये अपने महावीर-प्रेसमें इसका शीघ्रताके साथ सुन्दर प्रकाशन किया, जिसके लिए हम उन्हें तथा प्रेसमें काम करनेवाले सभी लोगोंको धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते। आशा है इस द्वितीय संस्करणको भी सहृदय पाठक उसी तरह अपनायेंगे, जिस तरह वे प्रथम संस्करणको अपना चुके हैं। चमेली-कुटीर, -दरबारीलाल कोठिया अस्सी, वाराणसी, ( एम० ए०, न्यायाचार्य, शास्त्राचार्य ) २४ मार्च, १९६६ मंत्री, वर्णो ग्रन्थमाला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.010044
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy