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________________ १०० हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन उदार और धार्मिक हृदयके प्रकाशम देवीका खड्ग कुंठित हो जाता और सिर झुकाकर उसे अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ती है। अन्तम ईष्यालु और घातक हृदय मॉकी लाड़ली पुत्री 'कनकश्री'का वध उसी खड्गसे हो जाता है । सत्य सर्वदा विनयी होता है, मिथ्या प्रचार करनेपर भी सत्य छुपता नहीं, सहनो आवरण ढाल्नेपर मी सूर्यकी खररश्मियोंके समान वह प्रकट हो ही जाता है। पाप पानीम किये गये मलक्षेपणके समान ऊपर उतराये बिना नहीं रहता । अतः कनकनीकी ईर्ष्यालु मात्रा पाप प्रकट हो जाता है और वह दण्ड पाती है। इस कथाम हृदयको स्पर्श करनेकी क्षमता है। घटना-चमत्कार इतना विलक्षण है, जिससे पाठक रसमग्न हुए विना नहीं रह सकता । 'जीवन पुस्तकका अन्तिम पृष्ठ' कहानीमें रात्रिभोजन-त्यागका विवाद माहात्म्य अंकित किया गया है। एक निम्नश्रेणीके वंशमे उत्पन्न बाल व्रत और नियमोंका पालनकर सदाचारसे जीवन व्यतीत करती है । वह कुटुम्बियों द्वारा नाना प्रकारसे सताये जानेपर भी अपनी प्रतिज्ञाको नहीं छोड़ती । व्रतका सत्परिणाम उसे जन्म-जन्मान्तराँतक भोगना पड़ता है। मानव जीवनको सुखी और सम्पन्न बनानेके लिए संयम और त्यागी अत्यन्त आवश्यकता है। 'मातृत्व में मातृहृदयका सच्चा परिचय दिया गया है, पर वदना भी मौके सदृश वात्सल्य करती है । पुत्रके ऊपर प्रेमकी दृष्टि समान होते हुए भी, दोनोंके प्रेममें आकाश-पातालका अन्तर है । जब एक ओर पुत्र और दूसरी ओर अतुल वैभवका प्रश्न उपस्थित होता है, तब असल माताका हृदय वैभवको ठुकराकर पुत्रको अपना लेता है । माताके निःस्वार्थ हृदयका इतना ज्वलन्त उदाहरण सम्भवतः अन्यत्र नहीं मिल सकेगा। 'चिरजीवी' सती गौरवकी अमिव्यंजना करनेवाली कथा है । प्रभावती अपने सतीत्वकी रक्षाके लिए अनेक संकट सहन करती है । दुष्टा-द्वारा अपहरण होनेपर भी वह अपने दिव्य तेनको प्रकटकर अपनी शक्तिका
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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