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________________ दो शब्द लिखे गये गद्यमें ब्रजभाषाके साथ खडी बोलीका रूप भी झांकता हुआ दिखायी पड़ता है । यदि निष्पक्ष रूपसे हिन्दी गद्य साहित्यका इतिहास लिखा जाय तो जैन लेखकोकी उपेक्षा नही होनी चाहिए। अभी तक लिखे गये इतिहास और आलोचना-ग्रन्थोमें जैन कवियों और वचनिकाकारोकी अत्यन्त उपेक्षा की गयी है । वर्तमान हिन्दी जैन काव्यधारामें अवगाहन करते समय मुझे सभी आधुनिक जैन कवियोंकी रचनाएँ नहीं मिल सकी हैं, अतः आधुनिक कृतियोपर यथेष्ट रूपसे प्रकाश नहीं डाला गया होगा तथा इसकी भी सभाबना है कि अनेक महानुभावोकी रचनाएँ विचार करनेसे यो ही छूट गयी हों । भारतेन्दुकालीन कई ऐसे जैन कवि हैं, जिनकी रचनाएँ भाव और भापाकी दृष्टिसे उपादेय है । तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओमे ये रचनाएँ प्रकाशित होती रही है। बहुत टटोलनेपर भी मुझे इस कालकी पर्याप्त सामग्री नही मिल सकी है। प्राचीन गद्य साहित्यपर और अधिक विस्तारकी आवश्यकता है, पर साधनाभाव तथा इस विषयपर स्वतन्त्र एक रचना लिखनेका विचार होनेका कारण विस्तार नही दिया गया है। नवीन गद्य साहित्य में निबन्धके क्षेत्रमें अनेक लेखक बन्धु हैं, जिन्होंने इस क्षेत्रका विस्तार करने में अपना अमूल्य योग दिया है । परन्तु ये निबन्ध इधर-उधर बिखरे पड़े हैं, अतः उनका जिक्र करना छूट गया होगा । श्री महेन्द्र राजा, श्री प्रो० देवेन्द्रकुमार, प्रो० प्रेमसागर, श्री बाबूलाल जमादार, अध्यात्मरसिक ब्र० रत्नचन्द्रजी सहारनपुर, अनेक ग्रन्थोके लेखक वर्णी श्री मनोहरलालजी, पं० सुमेरचन्द्र न्यायतीर्थ, श्री महेन्द्रकुमार साहित्यरत्न, पं० हीरालाल कौशल शास्त्री प्रभृति अनेक बन्धुओंके निवन्त्रका परिचय देना छूट गया है। ये नवयुवक हिन्दी जैन साहित्यकी उन्नतिमें सतत सलग्न है। इनमेसे कई महानुभाव तो कहानीकार और कवि भी हैं। यद्यपि मैंने अपनी तुच्छ शक्तिके अनुसार लेखकोकी रचनाओंपर
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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