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________________ कथानक ८२ हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन सेवती नामक नगरके राजा कनककेतुकी प्रिया मनसुन्दरीने एक प्रतिभाशाली, वीर पुत्रको जन्म दिया। यह बालक बचपनसे ही भावुक सदाचारी और बुद्धिमान् था । दो-तीन वर्षकी * अवस्थासे ही माता-पिताके साथ पूजा-भक्तिमे शामिल होता था। युवा होनेपर ससारके विषय-भोगोसे खनककुमारको विरक्ति हो गयी। माताके वात्सल्य और पिताके आग्रहने वहुत दिनोंतक उन्हें घरम रोक रखा, पर एक दिन वह सब कुछ छोड़ दिगम्बर दीक्षा ले आत्मकल्याणमे लग गये । जब खनककुमार एकाकी विचरण करते हुए अपनी वहन देववालाकी समुराल पहुंचे तो भाईको इस वेषमे देखकर बहनकी ममता फूट पड़ी। भयकर कड़कडाते जाड़ेमें नग्न रहनेकी कल्पना मात्रसे ही उसको कट हुआ। वह सोचने लगी-हाय ! मेरे माईको कितना कष्ट है, यह राजपुत्र होकर इस प्रकारके दुःखोंको कैसे सहन करेगा? चिन्तित रहनेके कारण ही देववालाका मन सासारिक भोगोसे उदासीन रहने लगा। जब इसके पतिको भार्याकी उदासीनताका कारण मुनि प्रतीत हुआ तो उसने जल्लाटो द्वारा मुनिकी खाल निकलवा ली। मुनि खनककुमारने इस अवसरपर अपनी दृढता, क्षमा और अहिंसा-शक्तिका अपूर्व परिचय दिया है। उनकी अद्भुत सहनशीलताके कारण उन्हें कैवल्यकी प्राप्ति हुई। इस कथाम करुण-रसका परिपाक इतना सुन्दर हुआ कि पापाणहृदय भी इसे पढकर आसू गिराये बिना नहीं रह सकता है । यद्यपि प्रवाहम शिथिलग है, कथोपकथन भी जीवट नहीं है । मुख्यकथाके सहारे अवान्तर कथानक भी घुसेड़ दिये गये है, जिससे शैलीमे सजीवता नहीं आने पायी है । वाक्यगठन अच्छा हुआ है। छोटे-छोटे अर्थपूर्ण वाक्याका प्रयोगकर वर्माजीने कथाके माध्यम-द्वारा धर्मोकी व्याख्या भी जहाँ-तहाँ
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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