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________________ हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन जैन आगमकी पुरानी कथाओंको हिन्दी भाषामे सरल ढगसे श्री डा० जगदीशचन्द्र जैनने लिखा है। इस सग्रहमे कुल ६४ कहानियाँ हैं, वो तीन भागोंगे विभक्त हैं--लौकिक, ऐतिहासिक और 'दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ धार्मिक। पहले भाग में ३४, दूसरे १७ और तीसरेंम १३ कहानियाँ है । लौकिक कथाओंम उन लोक प्रचलित कथाओका सकलन है, जो प्राचीन भारतमं विना सम्प्रदाय और वर्ग भेद- के जनसाधारणमे प्रचलित थी । इस वर्गकी कथाओं में कई कहानियों सरस, रोचक और मर्मस्पर्शी है। कल्पना-शक्ति और घटना - चमत्कार इन कथाओं मे पूरा विद्यमान है। अतः कलाकी दृष्टिसे भी इन कहानियोंका महत्त्व है। ८० ऐतिहासिक कहानियोंमें भगवान् महावीरके समकालीन अनेक राजारानियोंकी कहानियाँ दी गयी हैं। इनमें जीवनमें घटित होनेवाले व्यापारोंके सहारे राजा-रानियोंके चरित्रोंका विश्लेषण किया गया है। यद्यपि जीवनसम्बन्धी गम्भीर विवेचनाएँ, जो नाना व्यापारोमे प्रकट होकर जीवनकी गुत्थियों पर प्रकाश डालती है, इनमें नहीं हैं, तो भी कथानककी सरसता पाठकको रसमग्न कर ही लेती है । धार्मिक विभागकी कहानियॉ धर्म प्रचारके उद्देश्यसे लिखी गई हैं। इन कहानियांसे स्पष्ट है कि अनेक चोर और डाकू मी भगवान् महावीरके धर्म दीक्षित हुए थे । तृष्णा, लोभ, क्रोध, मान, माया आदि विकार मानवके उत्थानमें बाधक है । व्यक्ति या समाजका वास्तविक हित सदाचार, संयम, समभाव, त्याग आदिसे ही संभव है। इस संकलनकी कहानियो पर प्रकाश डालते हुए भूमिकामे आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदीने लिखा है - " संग्रहीत कहानियाँ वढी सरस हैं । डा० जैनने इन कहानियों को बड़े सहन ढंगसे लिखा है । इसलिए ये बहुत सहजपाठ्य हो गई १. प्रकाशक -- भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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