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________________ कथा-साहित्य कथा - साहित्य सभी जाति और धर्मों के साहित्यमे सदासे कहानियोकी प्रधानता रही है । इसका प्रधान कारण यह है कि मानव कथाओमे अपनी ही भावना और चरित्रका विश्लेषण पाता है; इसलिए उनके प्रति उसका आकर्षित होना स्वाभाविक है। जैन साहित्यमे आजसे दो हजार वर्ष पहलेकी जीवन के आदर्शको व्यक्त करनेवाली कथाएँ वर्तमान हैं । ७७ जैन आख्यानों में मानव-जीवन के प्रत्येक पहलुका स्पर्श किया गया है, जीवनकै प्रत्येक रूपका सरस और विशद विवेचन है तथा सम्पूर्ण जीवनका चित्र विविध परिस्थिति-रगोसे अनुरञ्जित होकर अकित है । कहीं इन कथाओमे ऐहिक समस्याओंका समाधान किया गया है तो कही पारलौकिक समस्याओका | अर्थनीति, राजनीति, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों, कला-कौशलके चित्र, उत्तुङ्गगिरि, अगाध नद-नदी आदि भूवृत्तोका लेखा, अतीतके जल-स्थल मागाँके सकेत भी जैन कथाओ में पूर्णतया विद्यमान हैं। ये कथाएँ जीवनको गतिशील, हृदयको उदार और विशुद्ध एव बुद्धिको कल्याणके लिए उत्प्रेरित करती है । मानवको मनोरंजनके साथ जीवनोत्थानकी प्रेरणा इन कथाओंसे सहज रूपमे प्राप्त हो जाती है । प्राचीन साहित्यमे आचाराग, उत्तराध्ययनाग, उपासकदशाङ्ग, अन्तकृद्दशाङ्ग, अनुत्तरौपपादिकदशाङ्ग, पद्मचरित्र, सुपार्श्वचरित्र, ज्ञातृधर्मकथाङ्ग आदि धर्म-ग्रन्थोमे आयी हुई कथाएँ प्रसिद्ध हैं। हिन्दी जैन साहित्यमे संस्कृत और प्राकृतकी कथाओका अनेक लेखक और कवियोने अनुवाद किया है। एका लेखकने पौराणिक कथाओंका आधार लेकर अपनी स्वतन्त्र कल्पनाके मिश्रण-द्वारा अद्भुत कथा-साहित्यका सृजन किया है । इन हिन्दी कथाओंकी शैली बड़ी ही प्राज्जल, सुवोध और मुहावरेदार है | ललित लोकोक्तियाँ, दिव्यदृष्टान्त और सरस मुहावरोंका प्रयोग किसी भी पाठकको अपनी ओर आकृष्ट करनेके लिए पर्याप्त है ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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