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________________ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन प्रेरित हो उन्होंने अन्यायी रावणके विरुद्ध वरुणकी सहायता कर रावणको परास्त किया। इघर आदित्यपुरमे गर्भवती अंजनाको कुलटा समझकर महारानी केतुमती-पवनञ्जयकी मॉने उसको घरसे निकाल दिया। वहाँसे निराश्रय हो जानेपर सखी वसन्तमालाने महेन्द्रपुर नाकर अंजनाके लिए आश्रय देनेकी प्रार्थना की ; पर वहॉ आश्रय न मिल सका | अतः वे दोनों वनमें चली गयी । यही एक गुफा, अंजनाने एक यशस्वी पुत्ररल को जन्म दिया। एक दिन हनूरुह द्वीपके राना प्रतिस्र्य जो अन्नाके मामा थे, उस वीहड़ वनमं आये और उसका परिचय प्राप्त कर अपने घर ले गये । वहीं उसके पुत्रका नाम हनुमान रखा गया। . विनयी होकर जब पवनञ्जय आदित्यपुर लौटे तो अजनाका उमाचार जानकर वह अत्यन्त दुखी हुए और चल पड़े उसकी खोनम । नवअजनाको यह समाचार मिला तो वह अधिक चिन्तित हुई। प्रतिसूर्य, प्रहाद आदि समी पवनञ्जयको हूँढ़ने चले। अन्तमें वे सब पवनञ्जयको हूँढकर ले आये और अंजना-पवनञ्जयका मिलन हो गया। पवनञ्चयको मिला एक नन्हा बालक 'मुक्तिदूत-सा। ___ यही मुक्तिदूतका कथानक है। यह कथानक पद्मपुराण, हनुमन्चरित आदि कई पुराणोंमें पाया जाता है। प्रतिभाशाली लेखकने इस पौराणिक कथानकमें अपनी कल्पनाका यथेष्ट समावेश किया है। यहाँ प्रधान प्रधान कल्पनाओंपर प्रकाश डाला जायगा । १-पद्मपुराणमे बतलाया गया है कि जब मिश्रऋगीने विद्युअमकी प्रशंसा की तो पवनलयने क्रोधसे अभिभूत होकर अंजना और मिश्रकेशीका सिर काटना चाहा, किन्तु ग्रहस्तके रोकनेपर वह शान्त हुए । नजिदूतम पवनञ्जयको इतना क्रोवामिभूत न दिखलाकर नायकके चरित्रको महत्वा दी गयी है। हॉ, नायकका 'अहंभावं' अपनी निन्दा सुनकर अवश्य जाग्रत हो गया है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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