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________________ ६६ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन जयदेव, सुशीला और भूपसिह पुनः विजयपुरकी तरफ रवाना हुए। चतुदिशामे आनन्द छा गया, दुःखी माता-पिताको सान्त्वना मिली। हीरालालकी पत्नी सुभद्रा पतिभक्ता और सुशीला थी, पर दुष्ट हीरालालने उसका यथोचित सम्मान नहीं किया। हीरालाल और रामकुंवरिकी बुरी दशा हुई, उनका काला मुख करके शहरमें घुमाया गया। सुभद्राका पुत्र सम्पत्तिका स्वामी बना। विरागी रतचन्द्र दीक्षित होकर विमलकीर्ति मुनिके नामसे प्रसिद्ध हुआ । अन्तमे श्रीचन्द्र, विक्रमसिंह और भूपसिहके पिता रणवीरसिंहको भी वैराग्य हो गया । महारानी मदनवेगा और विद्यावती भी आर्यिका हो गयीं। इस उपन्यासमें पात्रोकी सख्या अत्यधिक है ; पर पुरुपपात्रोमे जयदेव, रत्नचन्द्र, हीरालाल, भूपसिंह, उदयसिंह आदि और - नारी-पात्रोंमे सुशीला, रामकुंवरि, सुभद्रा और रेवती प्रधान हैं । इन पात्रोके चरित्र-विश्लेषणपर ही कथा स्तम्भ खडा किया गया है। जयदेव उच्चकुलीन राजपुत्र है। विपत्तिमे सुमेरुके समान दृढ और सहनशील है । उत्तरदायित्वको निभानेमें दृढ़, निष्कपट और ब्रह्मचारी है। पत्नीके प्रति अनुरक्त है ; जी-तोड श्रम करनेसे विमुख नही होता है। रत्नचन्द्र अपने नगरका प्रसिद्ध जौहरी है । न्याय और कर्त्तव्यपरायण होनेसे ही नगरमे उसका अपूर्व सम्मान है। मनुष्य परखनेकी कलामे भी यह उतना ही कुशल है, जितना रत्न परखनेकी कलामे । आदर्श और सदाचारको यह जीवन के लिए आवश्यक तत्त्व मानता है । जब दुश्चरित्रका साक्षात्कार उसे हो जाता है, वह विरक हो दीक्षा ग्रहण कर लेता है। हीरालाल व्यसनी, व्यभिचारी और क्रूर प्रकृतिका है। अपनी सौतेली मॉके साथ दुष्कर्म करते हुए इसे किसी भी तरहकी हिचकिचाहट
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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