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________________ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन छोटी रानीके पास मालामें गूंथ कर ले गयी । मालिनके इस व्यवहारसे बड़ी रानी रूठ गयी । नरेशने उन्हें गजमोतियोका हार ला देनेका आश्वासन देकर मनाया। दूसरे दिन प्रातःकाल नगरके जौहरियोको बुलाकर उन्होंने गजमोती लानेका आदेश दिया । लालचवश सभी जौहरियोंने गजमुक्ता लानेमे असमर्थता प्रकट की। जौहरी हेमदत्तने राजसभाम तो गनमुक्ता लानेसे इन्कार कर दिया, पर घर आकर सोचने लगा कि जब मेरे पुत्र बुद्धिसेनकी बहू घरमें आयेगी, तो सभी भेट खुल जायगा । राना मेरी सारी सम्पत्ति लुटवा लेगा और मैं दरिद्री बन खाक छानूंगा। अतएव अपने छः पुत्रोंसे परामर्शकर वधू घरमे न आ सके, इसलिए बुद्धिसेनको निर्वासित कर दिया। विवश बुद्धिसेन घरसे निकलकर अपने श्वशुराव्य हस्तिनापुर आया और पत्नीके अनुरोधसे दोनों दम्पति सम्पत्ति अर्जन करनेकी इच्छासे निस्तब्ध रात्रिमें चुप-चाप घरसे निकल गये । धर्मपरायण पत्नीकी सहायता से बुद्धिसेनने रत्नपुर पहुंचकर वहॉके राजाको प्रसन्न किया । रत्नपुरके राजाने प्रसन्न होकर अपनी पुत्रीका विवाह बुद्धिसेनसे कर दिया और अपार सम्पत्ति दहेजमे दी। अपनी दोनों पलियोके साथ सुखपूर्वक रहते हुए बुद्धिसेनने कई वर्ष व्यतीत किये । एक दिन धर्मनिष्ठ मनोवतीने बुद्धिसेनको संसारकी दमासे परिचित किया और एक जिनालय निर्माण करनेकी प्रेरणा की। पत्नीकी प्रेरणा पाकर बुद्धिसेनने लगभग एक करोड़ रुपये खर्चकर एक भव्य मन्दिर बनवाया । इस समय बुद्धिसेनका व्यापार बहुत उन्नतिपर था, कई अरब रुपये उसके पास एकत्रित थे। बुद्धिसेनके माता-पिता और भाई-भाभियो, जिन्होंने बुद्धिसेनको घरसे निकाल दिया था, जिनदेवके अपमानके कारण निर्धनी होकर आजीविकाके लिए इधर-उधर भटकने लगे। सौभाग्य या दुर्भाग्यसे वे चौदह प्राणी बुद्धिसेनके भव्य मन्दिरमे काम करनेवाले मजदूरों के साथ कार्य करने लगे। क्रोधावेशमे बुद्धिसेनने पहले तो उनसे मजदूरी करायी ; किन्तु
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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