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________________ उपन्यास ऊंचा उठानेका पूरा प्रयास विद्यमान है। वर्तमानमें जनताका जितना आर्थिक शोषण किया जा रहा है, उससे कहीं अधिक आध्यात्मिक शोपण। समाज निर्माणमे आर्थिक शोषण उतना बाधक नही, जितना आध्यात्मिक शोषण । आर्थिक शोषणसे समाजमे गरीबी उत्पन्न होती है, और गरीबीसे अशिक्षा, भावात्मक शून्यता, अस्वास्थ्य आदि दोष उत्पन्न होते हैं । परन्तु आध्यात्मिक हास होनेसे जनताका माव-जगत् असर हो जाता है, जिससे उच्च सुखमय जीवनकी अभिलाषापर का और सन्देहोका तुषारापात हुए बिना नहीं रह सकता। आत्मविश्वास और नैतिक बलके नष्ट हो जानेसे जीवन मरुस्थल बन जाता है और हृदयकी आकांक्षाओंकी सरिता, जिसमे उज्ज्वल भविष्यका श्वेत चन्द्रमा अपनी ज्योत्स्ना डालता है, शुष्क पड़ डाती है। आत्मविश्वासके चले जानेपर जीवन उद्भ्रान्त और किकर्त्तव्य-विमूढ हो जाता है और जीवनमे आन्तरिक विशृंखलता भीतर प्रविष्ट हो जीवनको अस्त-व्यस्त बना देती है। जैन उपन्यासोम कथाके माध्यमसे इस आध्यात्मिक भूखको मिटानेका पूरा प्रयत्ल किया गया है। ___ आत्मविश्वास किस प्रकार उत्पन्न किया जा सकता है ? नैतिक या आत्मिक उत्थान, जो कि जीवनको विषम परिस्थितियोसे धका लगाकर आगे बढ़ाता है, की जीवनमे कितने परिमाणमें आवश्यकता है ? यह जैन उपन्याससे स्पष्ट है । जीवनकी विडम्बनाओंको दूरकर आध्यात्मिक क्षुधाको शान्त करना जैन उपन्यासोका प्रधान लक्ष्य है। ___ जीवन और जगत्के व्यापक सम्बन्धोकी समीक्षा जैन उपन्यासोम मार्मिक रूपसे की गयी है । कथानक इतनारोचक है कि पाठक वास्तविक ससारके असन्तोष और हाहाकारको भूलकर कल्पित ससारमें ही विचरण नहीं करता, किन्तु अपने जीवनके साथ नानाप्रकारकी क्रीड़ाएँ करने लगता है। ये क्रीड़ाएँ अनुभूतियोके भेदसे कई प्रकारकी होती है । आगा, आकाक्षा, प्रेम, घृणा, करुणा, नैराश्य आदिका जितना सफल चित्रण जैन उपन्यासकारोंने किया, उतना अन्यत्र शायद ही मिल सकेगा।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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