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________________ नूतन प्रवृत्ति जैन गजटकी पुरानी फाइलेमें अनेक ऐसी समस्यापूर्तियाँ हैं जिनमें कवियोके नाम नहीं दिये गये है, परन्तु इन कविताओसे कवियोंकी उस कालकी काव्यप्रवृत्तियो और कविताकी विशेषताओका सहज में ही परिचय प्राप्त हो जाता है। नूतन प्रवृत्ति नूतन-प्रवृत्तिके कवियोंकी स्फट कविताओका समुचित वर्गीकरण करना असम्भव-सा है। वर्तमान युगमे सहस्रोन्मुखी पहाड़ी झरनेके समान अनेकोन्मुखी जैन काव्य-सरिता प्रवाहित हो रही है। अतः समय-क्रमानुसार इस प्रवृत्तिके कवियोंको तीन उत्थानोमे विभक्त किया जा सकता है। प्रथम उत्थान ई० सन् १९०० से ई० सन् १९२५ तक, द्वितीय उत्थान ई० सन् १९२६-१९४० तक और तृतीय उत्थान ई० सन् १९४१-१९५५ तक लिया जायगा। प्रथम उत्थानकी स्फुट कविताओको वृत्तात्मक, वर्णनात्मक, नैतिक या आचारात्मक, मावात्मक और गेयात्मक इन पाँच मागोंमे विभक्त किया जा सकता है । ऐतिहासिक वृत्त या घटनाको आधार लेकर जिन कविताओंमे भावामिन्यजन हुआ है, वे वृत्तात्मकसशक हैं। प्राकृतिक दृश्य, स्थान, देशदशा, कोई धार्मिक या लौकिक दृश्यका निरूपण वर्णनात्मक ; नीति, उपदेश, आचार या सिद्धान्त निरूपण आचारात्मक ; शृगार, प्रणय, उत्साह, करुणा, सहानुभूति, रोप, क्रान्ति आदि किसी भावनाका निस्पण भावात्मक और रसप्रधान मधुर एव ल्ययुक्त रचना गेयात्मक है। वृत्तात्मक रचनाओमे कवि गुणभद्र 'आगास की प्रद्युम्नचरित्र, रामवनवास और कुमारी अनन्तमती रचनाएँ साधारण कोटिकी हैं। इनमे काव्यत्व अल्प और पौराणिकता अधिक है। कवि कल्याणकुमार 'शशि'का देवगढकाव्य भी वृत्तात्मक है। कवि मूलचन्द्र 'वत्सल'का वीर पचरत्न वृत्तात्मक साधारण काव्य है, इसमें प्रण वीर लव-कुशकुमार, युद्धवीर
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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