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________________ हिन्दी - जैन-साहित्य-परिशीलन आसू मास आदि धौंसु संपूरन ग्रन्थ कीन्हों, बारतिक करिकै उदार ससि मैं । जो पै यहु भाषा ग्रन्थ सबद सुवोध या कौ, ठौ बिनु सम्प्रदाय नचै तव बस मैं । २२२ यातै ग्यानलाभ जाँति संबनिको बैन मानि, वात रूप ग्रन्थ लिखे महाशान्त रस मैं ॥१॥ राजमल्ल - हिन्दी जैन गद्य लेखकोमेसे सबसे प्राचीन गद्य-लेखक राजमल्ल है । इन्होने सवत् १६०० के आसपास समयसारकी हिन्दी टीका 1 लिखी थी। इनकी इस टीकासे ही समयसार अध्ययन-अध्यापनका विपय बना था | महाकवि बनारसीदासको इन्हीकी टीकाके आधारपर नाटक समयसार लिखनेकी प्रेरणा प्राप्त हुई थी । पाण्डे जिनदास - इन्होंने ब्रह्म शान्तिदासके पास शिक्षा प्राप्त की थी । यह मथुराके निवासी थे । इन्होंने सवत् १६४२ मे जम्बूस्वामी चरित्रको समाप्त किया था । इनकी एक अन्य रचना जोगीरासो भी उपलब्ध है । कविताका नमूना निम्न है अकवर पातसाह के राज, 'कीनी कथा धर्मके काज । भूल्यो बिछूहो अच्छर जहाँ, पंडित गुनी सधारो तहाँ ॥ करै धर्म सो टीका साह, टोडर सुत गरे सनाहु ॥ कुँवरपाल - महाकवि बनारसीदासके घनिष्ठ मित्रोमे इनका स्थान था | युक्ति-प्रबोधमे बताया गया है कि बनारसीदासने अपनी शैलीका उत्तराधिकार इन्हींको सौंपा था । पाडे हेमराजकी प्रवचनसार टीकामे इनको अच्छा ज्ञाता बतलाया गया है। बनारसीदासको सूक्तिमुक्तावली मे जो इनके पद्य दिये गये हैं, उनके आधारपर इन्हें अच्छा कवि कहा जा सकता है । परम धरम घन दहै, दुरित अंबर गति धारहि । कुयश धूम उदगरे, भूरिमय भस्म विधारहि || A
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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