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________________ परिशिष्ट २१० कवि विनयचन्द्रसूरि है। इनका समय विक्रम संवत्की तेरहवीं शती है । इनके गुरु रत्नसिह थे। कवि विनयचन्द्र सत्कृत, प्राकृत और हिन्दी इन तीनो ही भाषाओंमे कविता करते थे। आपके द्वारा हिन्दी भाषामे 'नमिनाथ चतुष्पदिका' नामक ४० पद्योका एक छोटा-सा ग्रन्थ तथा उपदेशमाला कथानक छप्पय ८१ पद्योका ग्रन्थ उपलब्ध है। नेमिनाथ चउपईमे प्रारम्मका कुछ चौपाइयाँ निम्न प्रकार है सोहग सुंदर घण लावन्नु, सुमरवि सामिउ सामलवन्तु । सखिपति राजल चढि उत्तरिय, बार मास सुणि जिम बजरिय ॥१॥ नेमिकुमर सुमरवि गिरनार, सिद्धी रानल कन्न कुमारि । श्रावणि सरवणि कडुए मेहु, गजइ विरहि रिझिज्जहु देहु ॥ विज्ज झवक्कह रक्खसि जेव, नेमिहि विणु सहि सहियइ केव । सखी भणइ सामिणि मन अरि, दुज्जण तणा मनवंछित पूरि ॥ गयेउ नेमि तउ विनठड काइ, अछह अनेरा वरह सयाइ । अम्वदेव-यह नगेन्द्रगच्छके आचार्य पासड सूरिके शिष्य थे। इन्होंने सवत् १३७१ मे संघपति-समरारास नामक ग्रन्थ लिखा है। अणहिरलपुर पट्टनके ओसवाल शाह समरासघपतिने सवत् १३७१ में शत्रुञ्जयतीर्थका उद्धार अपार धन व्यय करके कराया था। कविने इसी इतिवृत्तको लेकर इस रास ग्रन्थकी रचना की है। भाषा राजस्थानीका परिस्कृतस्प है। कविताका नमूना निम्न प्रकार है वालिय संख असंख नादि काहल दुडुडिया। घोड़े चडइ सल्लारसार राउत साँगड़िया । तर देवाला जोनिवेगि घाघरि खु क्षमक्का । समविसम नवि गणइ कोइ नवि वारिउ थक्छ। जिनपद्मसूरि-इनके पिताका नाम आवाशाह और पितामहका नाम लक्ष्मीधर था । यह खीमड कुल्म उत्पन्न हुए थे । सवत् १३८९ में
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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