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________________ हिन्दी जैन साहित्यमें भलंकारयोजना रागी बिन रागीके विचारमें बड़ो ही भेद जैसे भटा पथ्य काहु काहुको बयारे है । कवि मनरंगलालने विनोक्ति अल्कारकी योजना द्वारा अपने अन्तरालकी व्यापकता और गहराईको बड़े ही अच्छे दगसे व्यक्त किया है। नेम बिना जो नर पर्याय । पशु समान होती नर राय ॥ x नाथ तिहारे साथ विन, तनक न मोहि करार। ताते हमहूँ साथ तुम, चलसी तनि घरवार । हे पुत्र चलो अब धेरै हाल । तुम बिन नगरी सब है विहाल ॥ कवि मनरंगलालने एक ही क्रिया शब्दको दो अथोंमे प्रयुक्त कर सहोक्ति अलकारका भी समावेश किया है। कविने प्रत्येक अगमे कामदेव और सुषमाको साथ साथ रखा है अंग अंगमे छायो अनंग । जहँ देखो तहँ सुखमा संग ॥ भैया भगवतीदासने इसकी उक्ति देकर निम्न पद्यमे कितने ढगसे चैतन्यका फन्देसे फॉसना दिखाया है। आपका अन्योक्ति अलकारपर विशेष अधिकार है। तोता, मतग आदिकी उक्तियोंसे आत्माकी परतन्त्रताकी विवेचना की है। हंस हंस हंस आप मुझ, पूर्व संवारे फन्द । तिहि कुदाव में बंधि रहे, कैसे होहु सुछन्द ॥ सूवा सयानप सब गई, सेयो सेमर वृच्छ । माये धोखे आम के, यापै पूरण इच्छ॥ कवि मनरंगलालने निम्न पद्यमे अतिशयोक्ति अलकारका समावेश कितने अनूठे ढगसे किया है
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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