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________________ आठवाँ अध्याय वर्तमान काव्यधारा और उसकी विभिन्न प्रवृत्तियाँ हिन्दी जैन साहित्यकी पीयूषधारा कल-कल निनाद करती हुई अपनी शीतलतासे जन-भनके सतापको आज भी दूर कर रही है। इस बीसवी शताब्दीमें भी जैन साहित्यनिर्माता पुराने कथानकोको लेकर ही आधुनिक शैली और आधुनिक भाषामे ही सृजन कर रहे है। भकि, त्याग, वीरनीति, श्रृंगार आदि विषयोपर अनेक लेखकोकी लेखनी अविराम रूपसे चल रही है। देश, काल और वातावरणका प्रभाव इस साहित्यपर भी पड़ा है। अतः पुरातन उपादानोंमे थोड़ा परिवर्तन कर नवीन काव्यभवनोका निर्माण किया जा रहा है। __ महाकाव्योमे वर्धमान इस युगका श्रेष्ठकाव्य है। इसके रचयिता यशस्वी कवि अनूप शर्मा एम. ए. है। इस महाकाव्यकी शैली संस्कृत व काव्योके अनुरूप है। संस्कृतनिष्ठ हिन्दीमे वंशस्थ, " द्रुतविलम्बित और मालिनी वृत्तोंमे यह रचा गया है। इसमे नख-शिखवर्णन, प्रभात, सध्या, प्रदोष, रजनी, ऋतु, सूर्य, चन्द्र आदिका वर्णन प्राचीन काल्योके अनुसार है। इस महाकाव्यका कथानक भगवान महावीरका परम-पावन जीवन है। कविने स्वेच्छानुसार प्राचीन कथावस्तुमे हेरफेर भी किया है। दो चार स्थलोकी कथावस्तुमें जैनधर्मकी अनमिनताके कथावस्तु कारण वैदिक-धर्मको ला बैठाया है। भगवान्की बालक्रीड़ाके समय परीक्षार्थ आये हुए देवरूपी सर्पका दमन ठीक कृष्णके कालिय-दमन के समान कराया है। सर्पकी भयंकरता तथा उसके कारण प्रकृति-विक्षुब्धता भी लगभग वैसी ही है। कवि कहता है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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