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________________ १७० हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन कविकी पहुँच कितनी दूरतक है यह उपर्युक्त उपमानोकी योजनासे कजलयुक्त वालकोंकी बड़ी-बड़ी ऑखे चित्तको हठात् अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। श्यामरंग भी चित्ताकर्षक और हृदयको शीतल करनेवाला होता है । अतएव केवल कमलकी उपमा यहाँ उपयुक्त नही हो सकती थी। इसी प्रकार युवावस्थामें अरुण नेत्र रहनेसे लाल कमलकी उपमा सौन्दर्यका पूरा चित्र सामने प्रस्तुत करने में सक्षम है | अरुणनेत्र प्रलाप, शूरता और दुस्साहमके सूचक हैं। वीर बेषके वर्णनमे अरुण कमलवत् नेत्रोंको कहना अधिक सौन्दर्य द्योतक है। वृद्धावस्थामें शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है। तथा रक्तकी कमी होनेसे नेत्र भी स्वभावतः कुछ श्वेत हो जाते हैं। कविने वृद्धावस्थाका पूरा चित्र सामने लानेके लिए ध्वेत कमलके समान नेत्रोको बतलाया है। कवि वृन्दावनने जिनेन्द्रके नेत्रोंकी निम्न छप्पयके प्रथम चरणमे छह उपमाएं दी है। और शेप पाँच चरणोंमे प्रत्येक उपमाके छ: छः विशेषण दिये है । नेत्रोकी दूसरी उपमा भी कमलसे ही है, पर यह उपमा साधारण नहीं है छः विशेषण युक्त है, अर्थात् सदल-पत्र सहित, विकसित, दिवसका, सजल-सरोवरका और मलयदेशका है । तात्पर्य यह है कि भगवान्के नेत्र मल्यदेशमे विकसित देवसिक सदल अरुण कमलके तुल्य है । साधारण कमलकी उपमा देनेसे यह अभिव्यजना कभी नहीं हो सकती थी। कोमलता, दयालुना, सर्वज्ञता, हितोपदेशिता और वीतरागताकी भावनाएँ उक्त उपमानोंसे ही यथार्थमें अभिन्यजित हो सकी है। मीन कमल मद धनद अमिय अंतकु छवि इन्ज । बुगल सदल अति अरुन, सधन उजव मय सज्जै ॥ हुलसित विकसित समद, दानि नाकी अति करे। केलि दिवस शुचि अति उदार, पोपक भरि चूरे ॥
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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