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________________ 1 ! . निबन्ध-साहित्य १३३ त्रुटि रह जाना मानवता है ।" इस युक्तिके अनुसार आपके इतिहासमे कुछ त्रुटियों रह गई है जिनका कतिपय समालोचकोंने असहिष्णुता के साथ दिग्दर्शन कराया है । फलतः जैन हिन्दी साहित्य के इतिहासपर आगे अन्वेषण करने का साहस नवीन लेखकोको नही हो सका । यदि अहम्मन्य समालोचकोंकी ऐसी ही असहिष्णुता रही तो सम्भवतः अभी और कुछ दिन तक यह क्षेत्र सूना रहेगा । यद्यपि ऐसे समालोचक खरी समालोचना करनेका दावा करते है पर यह दम्भ है । इससे नवीन लेखकोका उत्साह ठण्ढा पड़ जाता है। श्री महात्मा भगवानदीन और बाबू श्री सूरजभान वकील सफल निबन्धकार हैं। आपके निवन्ध रोचक और ज्ञानवर्धक हैं। साहित्यान्वेषणात्मक अनेक निवध "वीरवाणी" में प्रकाशित हुए है। जयपुरके अनेक कवियोपर शोधकार्य श्री पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ तथा उनकी शिष्यमंडली कर रही है, जो जैन हिन्दी साहित्यके लिए अमूल्य निधि है । श्री अगरचन्द नाहटाने अवतक तीन, चार सौ निबन्ध कवियोके जीवन, राजाश्रय एव जैनग्रन्थोंके परिचयपर लिखे है। शायद ही जैनअजैन ऐसी कोई पत्रिका होगी जिसमें आपका कोई निवन्ध प्रकाशित न हुआ हो। आपके कई निबन्धोंने तो हिन्दी साहित्यकी कई गुत्थियोंको सुलझाया है। "पृथ्वीराजरासो के विवादका अन्त आपके महत्त्वपूर्ण निबन्ध-द्वारा ही हुआ है। बीसलदेवरासो और खुमानरासोके रचनाकाल और रचयिता के सम्बन्धमें विवाद है। आशा है, हिन्दी साहित्य के इतिहासलेखक आपके निबन्धो द्वारा तटस्थ होकर इन ग्रन्थोकी प्रामाणिकतापर विचार करेगें । श्रीमती पं० ० चन्दाबाईजीने महिलोपयोगी साहित्यका सृजन किया है । अनेक निबन्ध संग्रह आपके प्रकाशित हो चुके हैं । लेखनशैली सरल है, भापा स्वच्छ और परिमार्जित है ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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