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________________ १२६ हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन वीरमार्तण्ड-चामुण्डराय, वादीमसिह', जैनवीर वकया, हुमुच, और वहॉका सातर राजा जिनदत्तराय, तौलवके जैन पालेयगार, कारकलका जैन मैररस राजवश और दानचिन्तामणि अतिमव्वे । ____ दक्षिण भारतके राजाओं, कवियों, तालुकेदाये, आचार्यों और दानी श्रावकोंपर आपके कई अन्वेषणात्मक निवन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। आपके गवेषणात्मक निबन्धोकी यह विशेषता है कि आप थोडेसे ही समझानेका प्रयास करते है । वाक्य मी सुव्यवस्थित और गम्भीर होते है । यद्यपि तथ्योंके निरूपणमें ऐतिहासिक कोटियो और प्रमाणोकी कमी है, तो भी हिन्दी जैन साहित्यके विकासमें आपका महत्वपूर्ण स्थान है। प्रायः सभी निबन्धीमें शानके साथ विचारका सामञ्जस्य है। शब्दचयन, वाक्यविन्यास और पदावलियोंके सगठनमे सतर्कता और स्पष्टताका आपने पूरा ध्यान रखा है। ___ श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीयके जैन-पूर्वजोकी वीरताका स्मरण करानेवाले ऐतिहासिक निवन्ध भी जैन हिन्दी साहित्यमे महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। गोयलीयजीने जैनवीरोके चरित्रको बड़े ही जोगखरोशके साथ चित्रित किया है। इनके निवन्धोंको पढ़कर मुटोंमें भी वीरता अंकुरित हो सकती है, जीवितोंकी तो बात ही क्या ? शैलीम चमत्कार है, कथनपणाली रूखी न हो इसलिए आपने व्यग और विनोदका भी पूरा समावेश किया है। आपकी भापामे उछल-कूद है। वह चिकोटी काटती हुई चलती है। पत्र-पत्रिकाओंमे आपके अनेक ऐतिहासिक निवन्ध प्रकाशित हैं। १. भास्कर भाग ६ पृ०२२९ । २. भास्कर भाग ७ पृ.।। ३. भास्कर भाग १२ कि.२ पृ. २२ । १. जैन सिद्धान्तभास्कर भाग १४ किरण पृ०१३ । ५.भास्कर १७ किरण २ पृ० ८८। ६. धर्णी अभिनन्दन अन्य पृ०२४३ १७, ज्ञानोदय सितम्बर १९५१।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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