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________________ ११६ हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन दत्तने उसे सात्वना दी। दुर्भाग्यवश तिलकामुन्दरीकी मुद्रिका छूट गई थी अतः यह उसे लेने के लिए जहाजसे उतर गया। अव क्या था दुष्ट बन्धुदत्तको धोखा देनेका अच्छा सुअवसर हाथ आया । उसने जहान आगे बढ़ा दिया और तिलकासुन्दरीपर आसक्त होकर उसका सतीत्व-नाश करना चाहा । किन्तु उसके दिव्य तेनके समक्ष उसे पराजित होना पड़ा। वन्धुदत्त अतुल सम्पत्ति और तिलकाको लेकर घर पहुंचा। सुरूषा पुत्रका वैभव देखकर आनन्दमग्न हो गई। तिलकाके साथ विवाह होनेका समाचार नगर मरमें फैल गया। जब भविष्यदत्त लौटकर आया तो किनारेपर जहाजको न पाकर बहुत दुखी हुआ। पर पीछे विमानमे बैठ हस्तिनापुर चला आया । पुत्र और अधीर मॉ कमलीका मिलाप हुआ। बन्धुदत्तके दुराचारका समाचार नगरभरमें फैल गया । मलिनवदना तिलकाका मुंह प्रसन्न हो गया। पतिके मिलनेकी आशाने उसके अशात जीवनको शाति-प्रदान की । राज-दरवारमे वन्धुदत्त और सुरूपाका काला मुंह हुआ। भविष्यदत्त और तिलकासुन्दरी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे । सेठ धनदेवको कमलश्रीसे क्षमा मांगनी पडी । वन्धुदत्त क्रोधित होकर पोदनपुरके युवरानके समीप पहुँचा और गनपुरके महारान भूपालकी कन्या सुमतासे विवाह करनेको उत्तेजित कर दिया । राजा भूपाल भविष्यदत्तको वर निर्वाचित कर चुके थे। अतः दोनो राजाओमे भयकर युद्ध हुआ। भविष्यदत्तने सेनापति पदपर प्रतिष्ठित हो अतीव वीरताका परिचय दिया। युद्ध में भविष्यदत्तको विजय-लक्ष्मी प्राप्त हुई । सुमताका भविष्यदरके साथ पाणिग्रहण हुआ। तिलकासुन्दरी पट्टरानी बनाई गई। इस नाटकमें वातावरणकी सृष्टि इतने गमीर एवं सजीव रूपमें की गई है कि अतीत हमारे सामने आकर उपस्थित हो जाता है । घोखा और कपटनीति सदा असफल रहती हैं, यह इस नाटकसे स्पष्ट है । कयो
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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