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________________ १४ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन "सुखदा-एक एक कर दस वर्ष बीत गये, परन्तु मेरी माँसाके सम्मुख अभी तक वही रम्य मूर्ति उसी सुन्दरताके साथ घूम रही है। यही ऋतु था, यही समय था, यही स्थान था, यही वृक्ष था, सूर्य अस्त हो रहा था, मन्द मन्द वायु चल रहा था। प्रकृतिपर अनूया यौवन छाया हुआ था। ___ अंजनासुन्दरी नाटककी मूल कथामे थोड़ा परिवर्तन करके कार्यकारणके सम्बन्धको स्पष्ट करनेकी चेष्टा की गई है। पर यह उतना सफल नहीं हो सका है, जितना अंजना में हुआ है । उदाहरणार्थ-मूल कथानुसार अजना अपनी सासको पवनंजय-द्वारा दी गई अँगूठी दिखाती है फिर भी उसे विश्वास नहीं होता और घरसे निकाल देती है । यह बात पाठकोको कुछ जचती-सी नहीं । कन्हैयालालने इस घटनाको हृदयग्राह्य बनानेके लिए अँगूठीके खो नानेकी कल्पना की है, परन्तु सुदर्शनने इस पहेलीको और स्पष्ट करनेके लिए लिखा है कि पवन अपनी अँगूठीके नगके नीचे अपने हस्ताक्षराकित एक कागजका टुकड़ा रखता था। ललिताने अँगूठी बदल ली। अंजनाको इस वातकी जानकारी नहीं थी, अत. असल ॲगुठीके अभावमे सासका सन्देह करना स्वाभाविक था। श्रीपाल नाटकका दूसरा स्थान है। इसमें मैनासुन्दरीकी अपेक्षा अधिक नाट्यनत्त्व पाये जाते है । कथोपकथन भी प्रभावक है। श्रीपाल-“हे चन्द्रवदने ! आपने जो कहा ठीक है क्षत्रिय लोग किसीके आगे हाथ नीचा नहीं करते हैं और कदाचित् कोई ऐसा करें भी तो ऐसा कौन कायर और निलामी पुरुप होगा जो दूसरोंको राज्य देकर आप प्रायश्चित्त-जीवन व्यतीत करेगा। ____ इसमें गद्य और पद्य दोनोंम लख्यकी मधुरता और क्रमवद्धता है। अभिनयकी दृष्टिसे यह नाटक बहुत अंशोंमे सफल रहा है। मापामं उर्दूशब्दोकी भरमार है । मनासुन्दरी नाटकका अभिनय किया जा सकता है, पर उसमें कला नहीं है। व्यर्थका अनुप्रास मिलानेके लिए भाषाको
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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