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________________ १०४ हिन्दी - जैन साहित्य - परिशीलन करते हैं, आपने उन्हीको कलात्मक शैली में लिखा है । अतः सभी कथाएँ जीवन के उच्च व्यापारोके साथ सम्बन्ध रखती हैं । यद्यपि कथानक, पात्र, घटना, हव्यप्रयोग और भाव ये पाँच कहानीके मुख्य अग इन आख्यानोमे समाविष्ट नहीं हो सके है, तो भी कहानियाँ सजीव है । जिस चीजका हृदयपर गहरा प्रभाव पड़ता है, वह इनमें विद्य मान है । वर्णनात्मक उत्कंठा (Narrative Curiosity) इन सभी कथाओं है । भापा इन कथाओ में कथा के प्रवाहको किस प्रकार आगे बढ़ाती हैं, यह निम्न उद्धरणोसे स्पष्ट है । "तुम्हारे जैसे दातार तो बहुत मिल जायेंगे, विरले ही होंगे, जो एक लाखको ठोकर मारकर मिलाकर चल देते हैं ।" पर मेरे जैसे त्यागी कुछ अपनी ओर से - त्यागी पृ० २४ "सूर्यके सन्ध्यासे पाणिग्रहण करते ही रजनी काली चादर ढालकर सुहागरातके प्रवन्धमे व्यस्त थी । जुगनू सरोंपर हण्डे उठाये इधर-उधर भाग रहे थे । दादुरोके आशीर्वादात्मक गीत समाप्त भी न हो पाये थे, कुमरीने सरुके वृक्षसे, कोयलने अमुभाकी ढालसे, तुलवुलने शास्त्रे गुलसे बधाईके राग छेडे | श्वानदेव और वैशाखनन्दन अपने मॅजे हुए कंठसे श्यामकल्याण आलापकर इस शुभ संयोगका समर्थन कर रहे थे, झींगुर देवता सितार बजा रहे थे कट्टो गिलहरी नाचनेको प्रस्तुत थी, पर रात्रि अधिक हो जानेसे वह तैयार न हुई । फिर भी उलूकखाँ वल्द वूमखाँ अपना खुरासानी और श्रीमती चमगीदड़ किशोरी अपना ईरानी नृत्य दिखाकर अजीव समा बाँध रहे थे ।" । ईर्ष्याका परिणाम विनोदात्मक शैलीमे कितनी सरलतासे लेखकने व्यक्त किया है | यह छोटा-सा आख्यान हृदयपर एक अमिट रेखा खीच देता है ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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