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________________ पुरातन काव्य-साहित्य इस चरितके रचयिता कवि हीरालाल है। इसमें काव्य-चमत्कार विद्यमान है। वें तीर्थंकर भगवान् चन्द्रप्रमकी जीवन-गाथा इसमें र वर्णित की गयी है। इस चरितमे १७ सन्धियाँ हैं। आरम्भमे श्रोता, वक्ता, नमस्कार और त्रिलोक वर्णनको विस्तार देनेके कारण कथाका आरम्म बहुत दूर जाकर किया गया है। जो व्यक्ति आरम्भसे ही कथा-जिज्ञासु है, वह इस वर्षनके पढ़नेसे ऊब-सा जाता है। आरम्भमें चार सन्धियोंमें ऋषभदेवके चरितका ही वर्णन किया गया है। पॉचवी सन्धिसे दसवीं सन्धितक पद्मनाभके भवान्तरोंका विशद वर्णन किया गया है। इस प्रकार दस सन्धियो तक चरित-नायकके जीवनके सम्बन्धमें कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता है। ग्यारहवी सन्धिमे भगवान् चन्द्रप्रमका गर्भावतार दिखलाया गया है। भव-भवान्तरोकी प्रासंगिक कथाओको कविने इतना रोचक बनाया है, जिससे जिज्ञासु पाठकोंका मन अवता नहीं है। ये कथाएँ आधिकारिक कथासे जुटी हुई हैं, समस्त झरने एक ही साथ मन्दाकिनीका रूप धर ग्यारहवी सन्धिमें उपस्थित हो जाते है। ___ भगवान् चन्द्रप्रभ काशीके नृपति महासेनकी पट्टरानी लक्ष्मणाके गर्भसे उत्पन्न हुए। नगरीके सौन्दर्य और वनविभूतिके चित्रणमे कविने अपना पूरा उपयोग लगाया है। वनवर्णनमें कितने ही प्रसिद्ध, अप्रसिद्ध मेवे और फलोके नाम गिनाये है। उदाहरणार्थ एक पद्य उद्धृत किया जाता है कमरख करपट कैर कैथ कटहर किरमारा । केरा कौच कसेर कंज कंकोल कव्हारा खिरनी खैर खजूर खिरहरी खारख खेनर । गौंदी गौरख पान गुंज गूलर गुझ गोझर ॥ बारहवी सन्धिमे भगवान्की बाललीलाओका बड़ा ही सरस चित्रण किया है। उनकी वेषभूषा, अनुपम शौर्य-पराक्रम, ज्ञान एवं अन्य काँका
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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