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________________ ५० हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन ही छोटे-छोटे भाव और विभिन्न मानसिक दशाओका चित्रण श्रेष्ठ कविने किया है। इस कारण इसमें महाकाव्यत्वकी अपेक्षा नाटकत्व अधिक है। सुदर्शनके स्वभावमे वैयक्तिक विशेषता है, यह धीर प्रशान्त नायक है, स्वभावतः शान्त और अपनी प्रतिभापर अटल है, इसे कोई भी प्रलोमन पथभ्रष्ट नहीं कर सकता है। कञ्चन और कामिनी जिनसे संसारकै दने-गिने व्यक्ति ही अपनेको विलग रख पाते हैं, से सुदर्शन निल्ति है। रस और शैलीकी दृष्टिसे भी यह महाकाव्य है, नायककै नामपर इसका नामकरण किया गया है। दृश्य-योजना, वस्तु-व्यापार-वर्णन और परिस्थिति-निर्माणकी योजना कविने यथास्थान की है। वर्णनोंमें नामोकी भरमार नहीं है, किन्तु वस्तुके गुणोका विश्लेषण किया गया है। टेगी भाषा और पुरानी हिन्दीके पश्चात् कई महाकाव्य प्रचलित हिन्दी भापाम भी लिखे गये । यद्यपि सोलहवी गतीके अनन्तर महाकाव्य लिखनेकी परिपाटी उटती गयी, फिर भी पुराण साहित्यको काव्यका विषय बनानेके कारण महाकाव्य रचनेकी परम्परा भीण स्पर्म चलती रही । प्रकरणवश राजस्थानी और व्रजभापाके कतिपय जैन महाकाव्योंका आलोचनात्मक परिचय देना अप्रासगिक न होगा। यह सफल महाकाव्य है, पूर्वोक्त सभी महाकाव्यके लक्षण इसमें वर्तमान हैं । इसकी कथा बड़ी ही रोचक और आत्मपोपक है। किस प्रकार पाश्र्यपुराण . चैरकी परम्परा प्राणीके अनेक जन्म-जन्मान्तरोतक ' चलती रहती है, यह इसमे बड़ी ही खूबीके साथ बतलाया गया है । पार्श्वनाथ तीर्थकर होनेके नौ भवपूर्व पोदनपुर नगरके राजा अरविन्दके मन्त्री विश्वभूतिके पुत्र थे। उस समय इनका नाम मरुभूति और इनके भाईका नाम कमठ था। विश्वभूतिके दीक्षा लेनेके अनन्तर दोना भाई राजाकै मन्त्री हुए । अव राजा अरविन्टने वनकीर्तिपर चढाई की तो कुमार मरुभूति इनके साथ युद्ध-क्षेत्रमे गया। कमठने राजधानीम अनेक उत्पात मचाये और अपने छोटे भाईकी पलीके साथ
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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