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________________ શું हिन्दी - जैन-साहित्य परिशीलन कथावस्तु विद्याधर, राक्षस और वानरवशका परिचय देनेके अनन्तर बताया है कि विजयार्द्धकी दक्षिण दिशामे रथनूपुर नामके नगरमे इन्द्र नामका प्रतापी विद्याधर रहता था। इसने लकाको जीतकर अपने राज्यमें मिला लिया । पाताल-लकाके राजा रनवका विवाह कौतुकमगल नगरके व्योमविन्दुकी छोटी पुत्री केकसीसे हुआ था, रावण इसी दम्पत्तिका पुत्र था। इसने बचपन में ही बहुरूपिणी विद्या सिद्ध की थी, जिससे यह अपने शरीरके अनेक आकार बना सकता था। रावण और कुमकरणने लकाके अधिपति इन्द्र और प्रभावशाली विद्याधर वैश्रवणको परास्तकर अपना राज्य स्थापित कर लिया । खरदूपण रावणकी वहन शूर्पणखाका हरण कर ले गया, पीछे रावणने अपनी इस बहनका विवाह स्वरदूपणके साथ कर दिया और पाताल-लकाका राज्य भी उसीको दे दिया । वानरवंशके प्रभावशाली शासक वालिने ससारसे विरक्त होकर अपने लघु भाई सुग्रीवको राज्य दे दिगम्बर- दीक्षा ग्रहण कर ली और कैलास पर्वतपर तपस्या करने लगा। रावणको अपने वल, पौरुषका बडा अभिमान था, अतः वह बालिपर क्रुद्ध हो कैलास पर्वतको उठाने लगा । इस इसलिए बाटिने अपने अगूठेके पर्वतके ऊपर बने जिनालय सुरक्षित रहे, जोरसे कैलास पर्वतको दबा दिया, जिससे रावणको महान् कष्ट हुआ । पञ्चात् वालिने रावणको छोड़ दिया और तपस्या कर निर्वाण पाया । अयोध्यामे भगवान् ऋषभदेव के वशसे समयानुसार अनेक राजा हुए, सबने दिगम्बरी दीक्षा लेकर तपस्या की और मोक्ष पाया । इस वाके राजा रघुकै अरण्य नामक पुत्र हुआ, इसकी रानीका नाम पृथ्वीमति था । इस दम्पत्तिको दो पुत्र हुए —अनन्तरथ और दारथ । राजा अरण्य अपने बड़े पुत्र सहित ससारसे विरक्त हो तपस्या करने चला गया तथा अयोध्याका शासनभार दशरथको मिला । एक दिन दशरथकी सभा में नारद ऋषि आये, उन्होने कहा कि रावणने किसी निमित्तज्ञानीसे यह जान
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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