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________________ हिन्दी - जैन- साहित्य - परिशीलन तावच्चि य सच्छंदोभमइ अवव्यंस- मच्च-मायंगो | जाव ण सयंभु-वायरण-अंकुशो पढड़ ॥ -- पउमचरिउ १-५ महाकवि पुष्पदन्त --- अपभ्रच भाषाकै महान् कवि पुष्पदन्त araar गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिताका नाम केशवभट्ट और माताका नाम मुग्धादेवी था । इनके माता-पिता पहले शैव थे, फिर जैन हो गये थे और अन्तमें जैन विधिके अनुसार सन्यास लेकर शरीर त्याग किया था । अभिमानमेस, अभिमानचिह्न, काव्यरत्नाकर, कविकुलतिलक, सरस्वती निलय और कव्वपिसल ( काव्यपिशाच ) ये इनकी उपाधियों थी । इन उपाधियोंसे प्रतीत होता है कि इनका स्वभाव अभिमानी था और यह अप्रतिम प्रतिभाशाली महाकवि थे। यह पहले किसी वीरराय नामक रानाके आश्रयमे थे । वहाँ इन्होने काव्यरचना भी की थी, परन्तु राजाद्वारा उपेक्षित होनेपर वहाँसे चलकर क्षीणकाय मान्यखेट आये। वहाँ राष्ट्रकूटनरेश कृष्णराज (तृतीय) के मन्त्री भरत के आश्रममे रहने लगे और यही पर महापुराणकी रचना की । इनकी रचनाओसे अवगत होता है कि यह विदग्ध दार्शनिक, प्रकाण्ड सिद्धान्तममंत्र और असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे । इनका समय ई० सन् ९५९ माना जाता है । इनकी निम्न रचनाएँ है । तिसट्टिमहापुरिसगुणाकार या महापुराण महाकाव्य और णयकुमार चरिउ तथा जसहरु चरिउ खण्डकाव्य है । I महाकवि वनारसीदास जैनसाहित्यमे हिन्दी भाषाका इतना बड़ा अन्य कवि नहीं हुआ । इनका जन्म एक धनी मानी सम्भ्रान्त परिवारमे हुआ था । इनके प्रपितामह निनदासका साका चलता था, पितामह मूलदास हिन्दी और फारसीके पंडित थे और यह नरवर ( मालवा ) मे वहाँ मुसलमान नवाबके मोदी होकर गये थे । इनके मातामह मदनसिंह चिनालिया जौनपुरके प्रसिद्ध जौहरी थे और पिता खड्गसेन कुछ दिनोंतक बगालके सुल्तान मोदीखाके पोतदार रहे थे। इनका जन्म जौनपुरमे माघ सुदी ११ सवत् १६४३ मे हुआ था । यह श्रीमाल वैश्य २४४
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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