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________________ १७४ हिन्दी - जैन-साहित्य-परिशीलन प्रलोभन इस मानवको मानवतासे किस प्रकार दूर कर देते हैं तथा जीवनक्षितिज इन प्रलोभनोंसे कितना धूमिल हो जाता है, आदिका सूक्ष्म विश्लेपण इस लघुकाय काव्यमें विद्यमान है । कञ्चन और कामिनीका प्रलोभन ही प्रधान है, इसीके अधीन होकर मानव नाना प्रताडनाओ, वेदनाओं और उद्वेनोका सन्दोह अपने में समेटे अखण्ड ऐश्वर्य-सम्भोगके अप्रतिहत आत्मोल्लास मे रत रहता है । परन्तु इस अपरिमित सुख - भाण्डार में भी आकाक्षाओं की अतृप्ति रहनेसे वेदनाजन्य अनुभूति वर्त्तमान रहती है । कविने अपनी भावुकता और कलात्मकताका आश्रय लेकर इस रूपकमे उपयुक्त तथ्यकी सुन्दर विवेचना की है। कविने मधुबिन्दुकका रूपक देते हुए बताया है कि एक दिन एक मुनिराज पूछे गये प्रश्नोंका उत्तर देनेके लिए कथा कहने लगे--" एक पुरुष वनमे जाते हुए रास्ता भूलकर इधर-उधर भटकने लगा । जिस अरण्यमे वह पहुँच गया था, वह अरण्य अत्यन्त भयकर था । उसमे सिंह और मदोन्मत्त गजोंकी गर्जनाएँ सुनाई पड़ रही थी । वह भयाक्रान्त होकर इधर-उधर छिपनेका प्रयास करने लगा, इतनेमे एक पागल हाथी उसे पकड़ने के लिए दौड़ा। हाथीको अपनी ओर आते हुए देखकर वह व्यक्ति भागा । वह जितनी तेजीसे भागता जाता था, हाथी भी उतनी ही तेजीसे उसका पीछा कर रहा था। जब उसने इस प्रकार जान बचते न देखी तो वह एक वृक्षकी शाखासे लटक गया, इस वृक्षकी शाखाके नीचे एक बड़ा अन्धकूप था तथा उसके ऊपर एक मधुमक्खीका छत्ता लगा हुआ था। हाथी भी दौड़ता हुआ उसके पास आया, पर शाखासे लटक जानेके कारण, वह उस पेड़ के तनेको सूँड़से पकड़कर हिलाने लगा । वृक्षके हिलने से मधुछत्तेसे एक-एक बून्द मधु गिरने लगा और वह पुरुष उस मधुका आस्वादन कर अपनेको सुखी समझने लगा | नीचेकै अन्धकूपमे चारो किनारोपर वार अजगर मुॅह फैलाये हुए बैठे थे तथा जिस शाखाको वह पकड़े था, उसे काले और सफेद रङ्गके
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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