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________________ हिन्दी-जैन-साहित्यका प्रादुर्भाव और खण्डकाव्य जैन-लेखको द्वारा विरचित इस भाषामे पाये जाते है। शृगार, वीर और नीतिकी स्फुट रचनाएँ भी इस भाषामे बड़ी मार्मिक और गम्भीर मिलती हैं । स्वयम्भू कविने (८-१०वी शती) हरिवंशपुराण' और 'पउमचरित' की रचना की, पश्चात् इनके पुत्र त्रिभुवनने पिताके अधूरे कार्यको पूरा किया। इसी शताब्दीमे धनपाल्ने 'भविसयत्तकहा' और महाकवि धवल्ने 'हरिवंशपुराण' की रचना की। ग्यारहवीं शतीमें पुष्पदन्त कविने 'महापुराण', श्रीचन्द मुनिने 'कथाकोष', सागरदत्तने 'नम्बूस्वामीचरित' और 'आराधनाकथाकोष' की रचना की। अभयदेव सूस्किा 'जयतिभुवन गाथास्तोत्र', देवचन्द्रका 'सुलसाख्यान' और 'शान्तिनाथचरित', वर्धमान सूरिका 'वर्द्धमानचरित', अब्दुल रहमानका 'सन्देश रासक' और पाहिड़ कविका 'पद्मिनी चरित' बारहवी शतीकी प्रमुख अपभ्रश रचनाएँ हैं | हेमचन्द्रकै पश्चात् तेरहवी शतीमे योगचन्द्रने 'योगसार' और 'परमात्मप्रकाश' तथा माइल्लघवलने 'नयचक्र लिखा। अपन शकी ये रचनाएँ पुरानी हिन्दीके बहुत निकट है। ___ अपभ्रश और पुरानी हिन्दीके जैन-कवियोंने लोक प्रचलित कहानियोंको लेकर उनमे स्वेच्छानुसार परिवर्तन करके सुन्दर काव्य लिखे। मध्यकालके आरम्भमे समाज और धर्म संकीर्ण हो रहे थे, अतः जैन-लेखकोने अपने पुरातन कथानकों और लोकप्रिय परिचित कथानकोमे जैनधर्मका पुट देकर अपने सिद्धान्तोके अनुकूल उपस्थित किया तथा पञ्चनमस्कार फल या किसी व्रतसे सम्बद्ध दृष्टान्त प्रस्तुत कर जनताके हृदय-पटलपर मानवोचित गुण अकित किये। बाहरी वेश-भूषा, पाखण्ड आदिका-जिनसे समाज विकृत होता जा रहा था बड़ी ही ओजस्वी वाणीमे जैन साहित्यकारोने निराकरण किया। मुनि रामसिंहने भेषकी व्यर्थता दिखलानेके लिए उसे सॉपकी केचुलीकी उपमा दी है। ऊपरी. आवरणको छोड देनेपर सॉप नवीन आवरण धारण करता है, पर विष उसका ज्यो कालो बना रहता है।
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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