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________________ १३२ हिन्दी - जैन-साहित्य- परिशीलन गयी है, किन्तु हृदय - पद्मको विकसित होनेकी पूरी गुजाइश है । यद्यपि इन ऐतिहासिक गीतिकाव्योंमे रागात्मक तत्त्वोंकी अनुभूति अधिक गहरी नही है; जिससे शायद कतिपय समालोचक हृदय-रमण-वृत्तिका अभाव • अनुभव करेंगे; परन्तु दार्शनिक पृष्ठभूमिपर भक्ति भावनाका पुट इतना अधिक है जिससे चराचर जगत्के साथ मानवका सौहार्द स्थापित हो जाता है | अहिसाकी सूक्ष्म और सरस व्याख्याऍ रहनेके कारण मानव सहानुभूति-सूत्र में आवद्ध हो, विश्वबन्धुत्वकी ओर अग्रसर होता है और जीवनमे प्रेम, करुणा एव दयाकी यथार्थताको अवगत करता है । मानवकी मानवके साथ ही नहीं, अन्य समस्त प्राणि-जगत् के साथ जो सौहार्दसम्बन्ध है, उसकी अभिव्यंजना इन काव्योमे मुख्य रूपसे हुई है । जगत् और जीवनके नाना रूपोंकी मार्मिक अनुभूति कई गीतोंमे विद्यमान है । जैन ऐतिहासिक गीतोका प्रधान वर्ण्य विषय जैन साधुओ और गुरुभोकी कीर्त्तिगाथा, राजा-महाराजाओं और सम्राटोंको प्रभावित कर धार्मिक अधिकार प्राप्त करनेकी चर्चा, जैनधर्मके व्यापक प्रभाव एव धार्मिक भावनाओको उभाडनेके तत्त्व है । अनेक सूरि और आचायोंने मुसलिम बादशाहोको प्रभावित कर अपने धर्मकी धाक जमाई थी तथा सनदे प्राप्त कर जिनालय निर्माण करनेकी स्वीकृति प्राप्त की थी। जिनप्रभ सूरिकी प्रशसा करते हुए एक गीतमें बताया गया है कि अश्वपति कुतुबु - द्दीनके वित्तको प्रसन्न कर इन्होंने अनेक प्रकारसे सम्मान प्राप्त किया था । सवत् १३८५ पौष सुदी ८ शनिवारको इन्होने दिल्लीमे अश्वपति मुहम्मदशाहसे भेट की थी । सुल्तानने इन्हे उच्चासन दिया । इनकी भाषण -क्ति विलक्षण थी, अतः इन्होने अपने व्याख्यान- द्वारा सुल्तान का मन मोह लिया | सुल्तानने भी ग्राम, हाथी, घोडे, धन तथा यथेच्छ वस्तुएँ देकर सूरीश्वरका सम्मान करना चाहा, पर इन्होंने स्वीकार नहीं किया । इनके इस त्यागको देखकर सुल्तानको इनके प्रति भारी भक्ति हो गई, जिससे उन्होंने इनका जुलूस निकाला, रहने के लिए 'वसति'
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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