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________________ तृतीयाध्याय ऐतिहासिक गीतिकाव्य अतीतसे सदा मानवका मोह रहा है। यह अतीत चाहे सुनहला हो अथवा मटमैला, पर उससे लेह करना मानवका स्वाभाविक गुण है। अतीतके प्रति इस प्रकार आकर्पित होनेका प्रधान कारण यह है कि भूतकालीन घटनाओकी मधुर स्मृति वर्तमानकालीन कठिनाइयोको विस्मृत करा सरस आनन्दानुभूति प्रदान करती है। बीती बातोंके चिन्तनमे अपूर्व रसानुभूति होती है, हृदय गौरव-रससे लबालब भर जाता है। मानवका आदिकालसे ही कुछ ऐसा अभ्यास है, जिससे वह यथार्थ जीवनके संकल्पोंसे ऊपर उठ कल्पना-लोकोमे विचरण कर स्वर्णिम अतीतकी सजीव प्रतिमा गढ़ता है। पूर्वजोंका ज्वलन्त आदर्श नस-नसमेंउष्ण रक्त प्रवाहित कर देता है। उज्ज्वल अतीतका प्रखर प्रकाश मानवके वर्तमान अन्धकारको विच्छिन्न कर उसे आलोकित करता है, और प्रस्तुत करता है उसे दानवतासे उठा मानवतामे । भूतकालसे पृथक् रहकर मनुष्य अपने वर्तमानसे अभिज्ञ नहीं हो सकता है क्योकि वर्तमानके साथ भूतकाल इस प्रकार लिपटा हुआ है, जिससे प्रत्येक वर्तमान मण अतीत बनता जा रहा है। प्रत्येक क्षणका क्रिया-व्यापार अतीतके कोपमै सचित होता जा रहा है तथा कालान्तरमे यही इतिहासका प्रतिपाद्य विषय बननेका उम्मेदवार है। यही कारण है. कि ऐतिहासिक स्थलो एव महापुरुषोंके नामोके साथ हमारे हृदयका घनिष्ठ सम्बन्ध है और इसी कारण हम इतिहास-प्रेमी बनते हैं। मानवशान-कोपका प्रत्येक कण इस बातका साक्षी है कि इतिहासका कलेवर. साहित्यसे ही निर्मित होता है। प्रत्येक देश, प्रत्येक राष्ट्र और प्रत्येक नाति.
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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