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________________ पदोंका तुलनात्मक विवेचन ११३ जव जम आइ केस गहि पटक, ता दिन कछु न बसायेगा। सुमिरन भजन दया नहिं कीन्हीं, तो मुख चोटा खायेगा । धरमराय जब लेखा मांगे, क्या मुख लेके जायेगा। कहत 'कबीर' सुनो भई साधो, साध संग तरि जायेगा । कवि दौलतरामने इसी आशयके अनेक पदोकी रचना की है । निम्नपद तो बहुत अशोमें मिन्ते-जुलते हैं । पाठक देखेंगे कि दोनों ही भक्त कलाकारोमे कितना साम्य है भगवन्त भजन क्यों भूला रे। यह संसार रैन का सुपना, तन धन पारि-वधूला रे ॥ भगवन्त०॥ इस जोवन का कौन भरोसा, पावक में तृण-पूला रे। काल कुदाल लिये सिर बा, क्या समझे मन फूला रे। भगवन्त०॥ स्वास्थ साधैं पाँच पाँव तू, परमारथ कौं लूला रे। कहु कैसे सुख पैहे प्राणी, काम करै दुखमूला रे ।। भगवन्तः॥ मोह पिशाच छल्यो मति मार, निज कर कंध वसूला रे। भज श्रीराज मतीवर 'भूधर', दो दुरमति सिर धूला रे भगवन्त०॥ जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो। नर भौ आसान नाहिं, देखो सोच समझ वारो ॥ जिनराला सुत माव तात तरुनी, इनसौं ममत निवारो। सवही सगे गरज के, दुखसीर नहिं निहारो । जिनराज० ॥ नामस्मरण और भगवत्-भजन करनेपर जोर देते हुए बुधजन, आनन्दधन, भागचन्द आदिने भी अनेक सरस पदोंकी रचना की है। मोह, अहंकार, कपट, आशा, तृष्णा, निद्रा, निन्दा, कनक-कामिनी, सन्तोष, धैर्य, दीनता, दया, सत्य, अहिंसा, मानसिक विकार, भौतिक जगत्को निस्सारता आदि-विषयक पर्दाम कबीर और जैनपद रचयिताओ.
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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