SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __२४ चौलत-जैनपदसंग्रह। भविन-सरोरुहसूर* भूरिगुनपूरित अरहंता । दुरित दोष मोष पथघोषक, करन कर्मअन्ता ॥ भविन० ॥ टेक ॥ दर्शवोपत युगपतलखि जाने जु भावऽनन्ता । विगताकुल जुतसुख अनन्त विन,-अन्त शक्तिवन्ता ।। भविन० ॥जातनजोतउदोतयकी रवि, शशिदुति लांजता। तेजयोक अवलोक लगत है, फोक सैचीकन्ता | भविन० ॥२॥ जास अनूप रूपको निरखत, हरखत हैं सन्ता। जाकी धुनि सुनि मुनि निजगुनमुन, पर-गर उगलंता भविन० ॥३॥ दौळ तौल नि जस तस वरनत, सुरुगुरु अकुलता। नामाक्षर सुन कान स्वानसे, रांक नाकगता -भविन ॥४॥ हमारी चीर हरो भवपीर । हमारी० ॥टेक०॥ मैं दुखतपित दयामृतसर तुम, लखि भायो तुम तीर । तुम परमेश मोखमगदर्शक, मोडदवानलनीर । इपारी० ॥१॥ तुम विनहेत जगतउपकारी शुद चिदानंद धीर । गनपतिज्ञानसमुद्र-न लधै, तुम गुनसिंधु गहीर ।। हमारी० ॥२॥ याद १भव्यरूपीकमलोंको सूर्य । २ दोषरहित । ३ दर्शन और ज्ञानसे । ४भालतारहित । ५इन्द्र । ६ अपने गुणोंका मनन करके । ७ विभाव पी विष । ८ अपरिमित । इन्द्र । १० रंक नाचीज1११ स्वर्ग गया।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy