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________________ १० दौलत-जैनपदसंग्रह । खारी || मत कीज्यौ जी० ॥ १॥ रोग वियोग शोक वनको धन, समता-लताकुठारी । केहरि करी अरी न देत ज्यौं, त्यौं ये 4 दुखभारी ॥ मत कीन्यौ० ॥ २॥ इनमें रचे देव तरु थाये, पाये शुभ्र मुरारी । जे विरचे ते सुरपति अरचे, परचे सुख अधिकारी ॥ मत कीज्यो० ॥ ३ ॥ पराधीन छिनमाहिं छीन है, पापबंधकरतारी ॥ इन्हें गिनें सुख आक्रमाहिं तिन, आमतनी बुधि धारी ॥ मत कीज्यौ० ॥ ४ ॥ मीन मैतंग पतंग भंग मृग, इन वश भये दुखारी | सेवत ज्यौं किपाक ललित, परिपाक समय दुखकारी ॥ यत कीज्यौ जी० ॥५॥ सुरपति नरपति खगपतिहूकी भोग न प्राप्त निवारी, दौल त्याग अव भज विराग सुख, यौँ पावै शिवनारी ॥ मत कीज्यौ जी यारी०॥६॥ सुधि लीज्यौ जी म्हारी, मोहि भवदुखदुखिया जानके, सुधि० ॥ टेक ॥ तीनलोकस्वामी नामी तुम त्रिभुवनके दुखहारी । गनयरादि तुम शरन लई लख लीनी सरन विहारी ॥ सुध ली० ॥१॥ जो विधि अरी करी हमरी १ मेघ । २ समतारूपी वेलके काटनेके लिये कुल्हाडी । ३ सिंह । ४ हाथी । ५ दुश्मन । ६ नरक । ७ नागय ग ! ८ वैरागी हुए। ९ हाथी। १० भ्रमर । ११ इन्द्रायणका फल ।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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