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________________ दशवैकालिके चतुर्थाध्ययनम् । १६७ जेमनुं एवा जीव ए षनिकायना जीव जाणवा. अहीं प्रथम पृथ्वी काय, वीजा प्रकाय, त्रीजा ते काय इत्यादि जे क्रम राख्यो बे, तेनुं कारण एम वे केः - सर्वप्राणिमानो धार पृथ्वी बे, माटे प्रथम पृथ्वी कायना जीव कह्या. ते पृथ्वीने आधारें - दक रहे बे, माटे धाराधेयभाव संबंधथी पृथ्वी काय पढी बीजा अष्कायना जीव कह्या. ते उदकनुं प्रतिपक्षीभूत तेज बे माटे प्रतियोगिजावसंबंधी काय पी त्रीजा तेजस्काय कह्या.. ते तेजनो उपष्टंजक ( जीववानुं साधन ) वायु बे, माटे . उपष्टंजकतालक्षण संबंधथी तेजस्काय कह्या. पढी चोथा वायुकाय जीव कला. ते वायुनुं ज्ञान, वृक्ष तथा लताना चलनवलनादिकथी थाय बे, ते माटे वायुकाय पी पांचमा वनस्पतिकाय जीव कह्या. ते वनस्पतिकायने उपद्रव करनार त्रस - काय बे, माटे वनस्पतिकाय पढी बघा त्रसकाय जीव कह्या. दवे उपर जे षड्जीवनि - काय का, तेमां कां पण संशय अथवा विरोध नहीं याववो जोइयें, माटे फरी तेज अर्थनुं स्पष्टीकरण करे बे. पुढवित्ति ( पुढवी के० ) पृथ्वी जे बे ते ( चित्तमंतमकाया के० ) चित्तवती आख्याता, जेने चित्त एटले जीवलक्षण चैतन्य ने तेने चितवती कहिये, अर्थात् सचित्त एवी तीर्थंकरादिकें आख्याता एटले कहेली बे. वली ते पृथ्वी केवी ने तो के ( अगजीवा के० ) अनेकजीवा एटले अनेक बे जीव जेमां वी. अर्थात् पृथ्वी कायमां अनेक जीवो बे, अर्थात् एक नथी. वली ते केवी तो, ( पुढोसत्ता के० ) पृथक्सत्वा, एटले अंगुलना असंख्यातमा जाग प्रमाण अवगाहनामां रहेला अनेक जीवो पृथक् पृथक् जेमां बे एवी पृथ्वी बे. एवं सांजलतां शिष्य साशंक ने पूढे वे केः - हे गुरो ! जो जीवपिंडरूप पृथ्वी बे, तो ते पृथ्वी पर साधु जो मलोत्सर्गादि क्रिया करे, तो अवश्य पृथ्वी कायनो अतिपात थायज, अने मलोत्सर्गादि क्रिया तो पृथ्वी उपर करयावगर बीजो कोइ उपायज नयी. ने एम ज्यारें थाय त्यारे साधुथी अहिंसकपणें रहेवायज नहीं, अने प्राणातिपात विरमणरूप जे साधुनो प्रधान धर्म बे तेनो बंध्यापुत्रनी परें असंभव प्राप्त थयो ? ए शंकाना उत्तरमां सूत्रकार कहे बे. अन्नवत्ति । ( अन्न सपरिणणं के०) अन्यत्र शस्त्रपरिणतायाः एटले शस्त्रेकरी परिणाम पामेलीजे पृथ्वी ते विनानी वीजी पृथ्वी बे, ते सचित बे, ते सचित्त पृथ्वीनो व्यतिपात करवो नहीं. अर्थात् शत्रपरिणत जे पृथ्वी बे ते चित्त होवाथी तेनेविषे मूत्रोत्सर्गादि करवामां हिंसादोष नथी, वीजी पृथ्वी उपर करवाथी हिंसादोप वे, तेमाटे साधुनुं हिंसकपणुं जे ठे ते जतुं नथी. हवे शस्त्र शब्दनो अर्थ कहियें वियें. जे जेनो नाश करें वे, ते तेनुं शस्त्र जावं. जेम लौकिकमां शरीरनुं शस्त्र खङ्गादिक प्रसिद्ध वे यहीं पृथ्वीना शस्त्रनो
SR No.010035
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorSamaysundar, Haribhadrasuri
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages771
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size60 MB
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