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________________ " . अर्थ-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शिष्य तिष्यक अनगार ८ वर्ष दीक्षा पाल कर ले वेले तपस्या करके एक मास का संलेखना संथारा करके आलोयणा करके काल के अवसर काल करके प्रथम देवलोक के तिष्यक विमान में शक्रेन्द्रजी का सामानिक देव हुआ। महाऋद्धिवंत हुआ। इनकी वैक्रिय शक्ति शक्रेन्द्रजी के माफिक है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शिष्य कुरुदत्त अनगार ने छह मास दीक्षा पाली । तेले तेले तपस्या करते हुए सूर्य की आतापना ली । अर्द्ध मास की संलेखना संथारा करके आलोयणा करके काल के अवसर काल करके दूसरे देवलोक में कुरुदत्त विमान में ईशानेन्द्र जी का सामानिक देव हुया। महा ऋद्धिवंत हुआ । इनके वैक्रिय की शक्ति ईशानेन्द्रजी के समान है। शक्रेन्द्रजी के विमान से ईशानेन्द्रजी का विमान करतल (हथेली) के दृष्टान्त माफक कुछ ऊंचा है और शकेन्द्रजी का विमान उससे कुछ नीचा है। कोई काम हो तो ईशानेन्द्रजी शक्रेन्द्रजी को बुलाते हैं तब शक्रन्द्रजी ईशानेन्द्रजी के पास दूसरे देवलोक में जाते हैं। ईशानेन्द्रजी बुलाने पर अथवा बिना बुलाने पर ही पहले देवलोक में शक्रेन्द्रजी के पास जाते हैं। इसी तरह बातचीत सलाह मशविरा कामकाज... करते हैं। किसी समय शकेन्द्रजी और ईशानेन्द्रजी दोनों में परस्पर कोई विवाद पैदा हो जाय तब वे दोनों इन्द्र इस तरह विचार करते
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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