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________________ ५० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व इसलिए झट बोले : 'मैं सब जानता हूँ, और फिर एक पनसेरी लोटे में ईख का रस द्ध मिलाकर ले आये।"१ द्विवेदीजी के आतिथ्य एवं शिष्टाचार की भूरि-भूरि प्रशंसा पं० देवीदत्त शुक्ल, डॉ० बलदेवप्रसाद मिश्र, हरिभाऊ उपाध्याय, मैथिलीशरण गुप्त, लक्ष्मीधर वाजपेयी, चिन्तामणि घोष आदि सभी ने की है। अपनी व्यवहारकुशलता तथा अतिथि-सत्कार के कारण वे अपने परिचितों के बीच एक आदर्शस्वरूप थे। (e) व्यवस्थाप्रियता: द्विवेदीजी स्वभाव से ही व्यवस्थाप्रिय थे । वे सिद्धान्त और शुद्धता के पक्षपाती थे। प्रत्येक कार्य में वे व्यवस्था, नियमितता, अनुशासन और स्पष्टता की अपेक्षा रखते थे। वे स्वयं औरों के साथ इन्हीं के अनुकूल आचरण करते थे और औरों से भी ऐसी ही नियमितता एवं सुव्यवस्था की आशा करते थे। उन्होंने वाणी के स्थान पर कर्म को अपने आदर्शों के प्रचार का माध्यम बनाया। मार्ग में गोबर, कांच, काँटा आदि पड़ा देखकर वे उन्हें रास्ते से हटा देते थे। यह देखकर अन्य लोगों को भी ऐसे सत्कर्मों की प्रेरणा मिलती थी। अपने घर में भी द्विवेदीजी बड़ा व्यवस्थित और नियमबद्ध जीवन बिताते थे। उनके घर में प्रत्येक वस्तु ठिकाने से उचित स्थान पर रखी जाती थी। अपनी पुस्तकों की सफाई वे स्वयं करते थे। पुस्तकें उन्हें प्राणों से अधिक प्रिय थीं। यदि वे किसी को उन्हें पढ़ने के लिए देते थे, तो पूरी हिदायत के साथ कि उनमें कहीं कोई दाग, स्याही अथवा गन्दगी न लगने पाये । व्यवस्था और नियमिततासम्बन्धी द्विवेदीजी की कठोरता इस सीमा तक थी कि एक बार उनकी पत्नी ने थाली में रखे गये पदार्थों का नियमित क्रम भंग कर दिया, तब उन्हें भर्त्सना सुननी पड़ी थी। इस प्रकार, द्विवेदीजी की व्यवस्थाप्रियता और सनियम जीवन बिताने की चारित्रिक विशेषताएँ जीवन-भर उनके साथ संलग्न रहीं। इस प्रकार, वस्तुतः, वे साहित्य और जीवन प्रत्येक क्षेत्र में एक सुव्यवस्था चाहते थे। इसी सुव्यवस्था को लाने के लिए उन्होंने पहले अपने रहन-सहन को व्यवस्थित किया, फिर अपने साहित्य में व्यवस्था को सर्वोपरि महत्त्व दिया। इन्हीं कारणों से वे हिन्दी के साहित्यिक विकास को एक व्यवस्थित मोड़ दे सके। अतएव, आचार्य द्विवेदीजी की व्यवस्थाप्रियता का भी अपना एक साहित्यिक महत्त्व है। (8) प्रतिभा को परख : ___ द्विवेदीजी स्वयं बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इसी कारण, उन्होंने जिस शीघ्रता से रेलवे-विभाग के विभिन्न कार्यों की जानकारी हासिल कर ली थी, उसी प्रतिभा के १. 'आचार्य द्विवेदीजी' : सं० निर्मल तालवार, पृ० ३० ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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