SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्व [ ३७ मिलाकर, यही कहा जा सकता है कि आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का व्यक्तित्व जितना ही भव्य और प्रभावशाली था, उनका रहन-सहन उतना ही सरल और सादगी से भरा था। इन्हीं का समुचित विकास उनकी विविध चारित्रिक विशेषताओं और स्वाभाविक लक्षणों के रूप में हुआ। गरीबी, कष्ट सहने की प्रवृत्ति, सादगी और ब्राह्मण-वंश में उत्पन्न होने के गौरव ने द्विवेदीजी के स्वभाव को एक विशेष मोड़ दिया। इसी के फलस्वरूप युगनिर्माता के रूप में उनका व्यक्तित्व तत्कालीन एवं परवर्ती साहित्यिकों द्वारा पूजित हुआ। स्वभाव एवं चारित्रिक विशेषताएं : ___ अपनी स्वभावगत विशेषताओं के आलोक में जिस विशालहृदय महापुरुष का व्यक्तित्व आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने निर्मित किया, उसका पूरा प्रभाव उनके द्वारा रचित एवं निर्देशित साहित्य पर भी पड़ा है। द्विवेदीजी के व्यक्तित्व से सम्बद्ध उनकी धारणाओं, विचारों, अनुभूतियों, भावों, वृत्तियों-प्रवृत्तियों एवं अन्यान्य साहित्यकारों का प्रभाव उनके आचार-विचार, रहन-सहन, वेश-भूषा, जीवन-दर्शन एवं अन्ततोगत्वा उनकी भापा-शैली पर स्पष्ट ही दृष्टिगोचर होता है। 'व्यक्तित्व ही शैली है' की उक्ति की सत्यता का प्रतिपादन उनके व्यक्तित्व एवं चरित्र की विशेषताओं के गम्भीर अध्ययन तथा इन सबके, उनकी साहित्य-साधना पर पड़े प्रभावों के अनुशीलन द्वारा होता है। उनकी सम्पूर्ण जीवन-रेखा पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट होता है कि बचपन से ही कष्ट सहन करने की प्रवृत्ति द्विवेदीजी में थी। रेलवे में काम करते समय पूरे उत्साह के साथ अपनी नौकरी करने, एवं साथ ही विद्याध्ययन भी जारी रखनेवाले द्विवेदीजी के चरित्र की अधिकांश प्रवृत्तियों का उदय उनके जीवन के प्रारम्भिक पच्चीस वर्षों में ही हुआ। डॉ० शंकरदयाल चौऋषि ने ठीक ही लिखा है : ____ "इस समय उनकी प्रतिभा का विलक्षण विकास और प्रकाश हुआ। कार्य की लगन, समय की पाबन्दी, कर्तव्य की तत्परता तथा सतत कठोर अध्यवसाय-ये सब उनके व्यक्तित्व के अग बन गये । यथार्थ में उनके इन्हीं गुणों ने, जिनका विकास उनकी रेलवे की नौकरी की अवधि में हुआ था, उन्हें हिन्दी-साहित्य का प्रथम आचार्य बनाया।"१ द्विवेदीजी के स्वभाव एवं चरित्र की ये विशेषताएँ उनके जीवन-पर्यन्त उनके साथ संलग्न रही। पत्नी के प्रति प्रेम, स्वाभिमान एवं निर्भयता, उग्रता, क्षमाशीलता, १. डॉ० शंकरदयाल चौऋषि : 'द्विवेदी-युग की हिन्दी-गद्यशैलियों का अध्ययन', पृ० १४०।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy