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________________ जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्व [ ३५ जीवन के अन्तिम दिनों में द्विवेदीजी कैसा शारीरिक कष्ट भोग रहे थे, इसका सहज अनुमान इन पंक्तियों से लगाया जा सकता है । सन् १९३८ ई० के १२ नवम्बर को द्विवेदीजी की हालत बिगड़ती देखकर डॉ० शंकरदत्त एवं कमलकिशोर त्रिपाठी आदि उन्हें रायबरेली ले आये । वहाँ डॉ० शकरदत्त के निवास स्थान पर अनेक डॉक्टरों के परिश्रम के बावजूद द्विवेदीजी की हालत बिगड़ने लगी । सन् १९३८ ई० के २१ दिसम्बर को चार बजे के बाद लगभग पौने पाँच बजे उन्हें अन्तिम हिचकी आई और जो समय दैनिक जीवन मे प्रातः काल जगने का था, उसी समय वे सदा-सर्वदा के लिए सो गये । सुबह होने पर उनका शव दौलतपुर लाया गया । चारों ओर कुहराम मच गया, परन्तु सरस्वती के अनन्य साधक, हिन्दी के भीष्मपितामह, महान् पत्रकार आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी की आत्मा अपना पिंजड़ा छोड़ चुकी थी । erferer : आचार्य द्विवेदीजी का व्यक्तित्व आचार्यत्व की गरिमा से भरा हुआ और विशद था । उनके गौर वर्ण, उन्नत ललाट, सिंह के समान बड़ी-बड़ी मूछें, बैसवाड़ी मुखमण्डल तथा असाधारण रूप से बड़ी-बड़ी भौंहें देखने से चित्त में एक महान् पुरुष एवं तत्त्ववेत्ता के साक्षात्कार का अनुभव होता था । सुन्दर लम्बा डीलडौल, विशाल रोबदार चेहरा, प्रतिभा की रेखाओं से अंकित भव्य भाल और वेश-भूषा की सादगी के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का जो प्रभाव द्विवेदीजी औरों पर डालते थे, उनका अपना एक विशेष आकर्षण होता था। डॉ० शंकरदयाल चौऋषि ने लिखा है : "पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी का व्यक्तित्व बहुत विशाल एवं विशद था । सुविशाल शरीर में उनकी प्रभावी मुखमुद्रा, सिंह की-सी बड़ी तथा घनी मूँछे, उन्नत ललाट, नीचे घनी भौहे, तेजस्वी मर्मभेदी दृष्टिसम्पन्न दूर देश-विदेश के हिन्दी - सेवियों को पहचान कर ढूँढ़ निकालनेवाले नेत्र आदि उनके बाह्य व्यक्तित्व का निर्माण करते थे । प्रथम दर्शन से ही दर्शक उनके उस भव्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाता था।" उनकी मुखाकृति से ही गाम्भीर्य टपकता था । उनके रोबीले व्यक्तित्व का बड़ा ही सुन्दर चित्रण अपने एक लेख में डॉ० भुवनेश्वरनाथ मिश्र 'माधव' ने किया है । यह अवसर था द्विवेदीजी के काशी - नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अभिनन्दित होने का और यहीं डॉ० माधव ने अपने जीवन में पहली और अन्तिम बार द्विवेदीजी के दर्शन किये। डॉ० माधव ने लिखा है : "द्विवेदीजी का वह रोबीला व्यक्तित्व एक बार ही सभा पर छा गया। ऐसा व्यक्तित्व वह था ही । द्विवेदीजी हण्टिग कोट पहने हुए थे, जिसकी चारो जेबें बाहर १. डॉ० शंकरदयाल चौऋषि : 'द्विवेदी युग की हिन्दी - गद्यशैलियों का अध्ययन', पृ० १४४ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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