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________________ शोध-निष्कर्ष [२४५ परिवेश के प्रति अधिक जागरूक नहीं थे और उन्होने समकालीन कुछ ही समस्याओं पर ध्यान दिया। परन्तु, भाषा और साहित्य की अराजकता के विनाश का जैसा युगान्तरकारी कार्य उन्होने किया, वही उन्हें आचार्यत्व एवं विषय की दृष्टि से रुचिकर बनाया । साहित्यिक लेखन को संवार कर एक निश्चित गति प्रदान करने का कार्य उन्होंने अकेले किया। नये-नये विषयों की ओर उन्मुख कर उन्होंने हिन्दीकविता एव गद्य को एक नया मोड़ दिया। इस प्रकार, वे अपने समकालीन परिवेश से सम्बद्ध रहने के साथ-ही-साथ साहित्यिक व्यवस्था के संस्थापक के रूप में मामने आये। उनके कत्त्व मे यूग की आत्मा एव साहित्यगत उन्नयन के दर्शन एक साथ होते है । यह उनके युग-नेतृत्व को विशेषता कही जा सकती है। अतएव, वास्तव में बीसवीं शती का यह प्रथम चरण (सन् १९००-१९२५ ई०) द्विवेदी-यूग था एवं आचार्य द्विवेदी इस युग के विधाता थे। ____ आचार्य द्विवेदी जिस युग की साहित्य-धारा के मार्गदर्शक बने, वह पर्याप्त अराजकतापूर्ण युग था । स्थिति यह थी कि सभी अपनी-अपनी डफली लेकर अपना राग अलाप रहे थे। कोई किसी की सुननेवाला नही था। सर्वत्र एक अजीब-सी उथल-पुथल थी। डॉ० रामसकलराय शर्मा ने लिखा है : “ऐसी परिस्थिति में एक ऐसे स्वतन्त्र व्यक्तित्व की आवश्यकता थी, जो किसी के झूठे वर्चस्व को स्वीकार न करे तथा अपने स्वतन्त्र विचारों से भाषा के क्षेत्र में मार्गदर्शन करे।...यह वही कर सकता था, जिसमें प्रतिभा का सम्बल हो, विवेक की गहरी दृष्टि हो, जीवन की अखण्ड ज्योति हो, कार्य के प्रति निष्ठा हो और हो किसी से भी न डरनेवाला साहस ।"१ आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदो के विराट व्यक्तित्व में युगनेता बनने की सारी विशेषताएँ थी। उनके चरित्न में बाल्यकाल से ही कष्ट सहने, कठिनाइयों से जूझने की क्षमता एवं स्वाभिमान पर अटल रहने का गुण आ गया या । उनके परिचितों एवं शिष्यों ने एक स्वर से उनकी सफलता की कुंजी घोर परिश्रम, दृढ संकल्प, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता एवं मनुष्यत्व को माना है। उनकी काया चाहे कभी स्वस्थ भले ही न रही, परन्तु मन सदैव स्वस्थ रहा । अपने दीर्घ साहित्यिक जीवन में उन्हें अनेकानेक मतभेदों एवं विरोधो का सामना करना पड़ा, परन्तु उन्होंने चाणक्य की भाँति विरोधियों का सामना कर उन्हें परास्त किया और असीम धैर्य, क्षमता एवं दक्षता दिखलाते हुए विजय का डंका बजाया। उनका जन्म सं० १९२१ वैशाख शुक्ल चतुर्थी को हुआ। बचपन से ही अध्ययन की प्रगाढ लालसा उनमें विद्यमान थी। इस कारण नवयुवक होने पर रेलवे की सेवा में सिगनलमैन, माल बाबू, स्टेशनमास्टर, चीफ क्लर्क जैसे नीरस असाहित्यिक पदों पर काम करते हुए भी उन्होंने पढ़ने-लिखने १. डॉ० रामसकलराय शर्मा : 'द्विवेदी-युग का हिन्दी काव्य', पृ० ७० ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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