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________________ कविता एवं इतर साहित्य [ २१ ठेकाना नाहि' शीर्षक प्रस्तुत कविता लिखकर उसका प्रकाशन कल्लू अल्हईत के नाम से किया था । इस बैसवाड़ी - कविता में लोक- प्रचलित आल्हा-शैली के बीस छन्द हैं । स्पष्ट है कि भाषा की दृष्टि से द्विवेदीजी की सम्पूर्ण काव्यसृष्टि को इन्हीं चार प्रमुख भाषाओं में विभक्त किया जा सकता है : व्रजभाषा, खड़ी बोली, संस्कृत और बैसवाड़ी । परन्तु विषय की दृष्टि से उनकी काव्यकृतियों का विभाजन बड़ा कठिन प्रतीत होता है । इसका मुख्य कारण यही है कि भारतेन्दु-युग से ही विषयों की जिस क्रान्ति ने जन्म लिया था, उसने द्विवेदी युग में आकर और भी विस्तार क लिया था। नये नये विषयों तथा उत्पन्न हो रही समस्याओं की सम्यक् प्रस्तुति करनाह अब साहित्य सेवियों का कार्य हो गया था। डॉ० सुधीन्द्र ने इस दिशा में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की महान् उपलब्धियों की चर्चा करते हुए लिखा है : "स्वेच्छित विषयवस्तु और संक्षिप्त स्वतन्त्र रूप के द्वारा आचार्य ने मुक्तक: कविताओं के लिए हिन्दी - सरस्वती का आँगन खोल दिया । पृथ्वी से लेकर आका तक के ईश्वर की निस्सीम सृष्टि में छोटे-छोटे सजीव अथवा निर्जीव पदार्थों पर स्थूल और सूक्ष्म सब विषयों पर अब कविगण कविता लिखते थे ।" १ विषय - वैविध्य के इस भरे-पूरे वातावरण में स्वयं द्विवेदीजी ने भी अनेक विषय को अपनी कविताओं का आधार बनाया । अपने समसामयिक साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिवेश तथा उनकी समस्याओं से वे अनभिज्ञ नहीं । इन सबका प्रस्तुतीकरण उन्होने कविताओं में किया । इसी तरह वे धर्म एवं अध्यात्म, प्रकृति एवं शृंगार आदि से सम्बद्ध कविताओं की रचना की दिशा में भी प्रवृत्त हुए । विषयों की इस विविधता को देखते हुए उनके सम्पूर्ण मौलिक काव्य को अधोलिखित चार रूपों में विभक्त किया जा सकता है : (क) साहित्यिक समस्यापरक कविताएँ; (ख) सामयिक समस्यापरक कविताएँ; (ग) अध्यात्मपरक कविताएँ और (घ) प्रकृति एवं सौन्दर्यपरक कविताएँ | हिन्दी - साहित्य क अपने समसामयिक वातावरण में नागरी लिपि की उपेक्षा एवं अवनत अवस्था देखकर द्विवेदीजी ने इनकी स्थिति में सुधार लाने का कार्य प्रारम्भ किया । साहित्यकारों को पत्र लिखकर, 'सरस्वती' में निबन्ध एवं टिप्पणियों को प्रकाशित कर ऐसा करने के साथ-ही-साथ उन्होने कविता को भी अपनी इन विचारणाओं का वाहक बनाया । नागरी की दशा, हिन्दी-साहित्य के विकास एक अपने साहित्यिक सिद्धान्तों आदि को प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने कई कविताएँ लिखी १. डॉ० सुधीन्द्र : 'हिन्दी - कविता में युगान्तर', पृ० ७२ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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